उमाकांत लखेड़ा, दिल्ली
केरल देश का ऐसा अकेला राज्य है जहां बाहरी प्रदेशों से रोजगार की तलाश में आए श्रमिकों को लेबर या मजदूर नहीं बल्कि” गेस्ट वर्कर” ( मेहमान कार्यकर्त्ता ) जैसे सम्मान जनक शब्द से संबोधित किया जाता है। वहां इसके लिए बाकायदा सरकारी गजेट नोटिफिकेशन है। गेस्ट वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा व कल्याण के लिए विशेष बोर्ड हैं । दूसरी ओर श्रमिकों के लिए उच्च गुणवत्ता के साफ सुथरे हाॅस्टल, नहाने धोने से लेकर इलाज तक के उम्दा प्रबंध, उनके लिए बच्चों के लिए अच्छे स्कूल केरल सरकार ने दर्जनों जगह बनाए हैं।पिछले साल मै खुद 2 सप्ताह पूरा केरल घूमा, ये सब अपनी आँख से देखा तो दंग रह गया. इस देश मे कोई भी सरकार व व्यवस्था ईमानदार हो तो क्या नही हो सकता ?
हर जगह वहां सरकार ने उनके लिए मैस की सुविधा दे रखी है। पिछले माह देश में लॉकडाउन हुआ तो केरल सरकार ने बिना काम के भी उन्हें राज्य में ही आदरपूर्वक रोका। बाकायदा विशेष गेस्ट वर्कर कैंटीनें व 4603 रिलीफ कैंप बनाए। दिन में बिना काम के वे खाली बैठकर बोर न हों, इसके लिए सोशल डिस्टेनसिंग का पालन करते हुए उनके लिए कैरम जैसे मनोरंजन के साधन व खेलों की व्यवस्था की। वहां से भी कई श्रमिक गांव वापस लौटे। केरल में बारी- बारी से कम्युनिस्ट व कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारें बदलती हैं लेकिन गेस्ट वर्कर कल्याण की नीति दिनों दिन मजबूत की जाती है।
उत्तर भारतीय राज्यों में इन प्रवासी या विस्थाापित श्रमिकों की क्या दयनीय दशा है,यह सब 24 मार्च को घोषित लाॅकडाउन के बाद दिल्ली मुंबई,सूरत और देश के कई हिस्सों में लाखों प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा को सारी दुनिया ने देखा । अधिकतर को तो बिना दोष के तिरस्कार व अपमान ही मिला! उनके साथ बर्ताव हुआ मानो कोरोना वायरस उन्होने ही फैलाया हो. उनको अपने गांव -घरों के लिए रेलवे व बसें बंद कर उन्हें जहां तहां, भूखे प्यासे मरने को छोड़ दिया गया। उनमें से कईयों को सैकड़ों किमी पैदल जाने को विवश किया गया, जिसमें दर्जनों श्रमिकों की मौत की कोई सही गिनती नहीं। हमारे शहरों की खुशहाली और विकास की चकाचौध में हाथ बंटाने वाले ये लाखों करोड़ो श्रमिक इंसान नहीं हैं क्या ?
(यह लेख वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेड़ा के फेसबुक वाल से लिया गया है.)