पटना। राजद के वरिष्ठ नेता तथा लालू प्रसाद व नीतीश कुमार के पुराने मित्र रहे शिवानंद तिवारी ने बिहार दिवस के कार्यक्रम के एक घटना को लेकर देश भर में हो रही राज्य की बदनामी को लेकर बड़ा बयान दिया है। अपने सोशल मीडिया पर शिवानंद तिवारी ने लिखा, बिहार दिवस मनाने की परंपरा नीतीश कुमार ने ही शुरू की है। समारोह से जुड़ी एक खबर देशभर के अखबारों में छपी है। खबर शर्मिंदा करने वाली है। समारोह में शोभा बढ़ाने के लिए राजधानी के बाहर से स्कूली छात्रों को भी बुलवाया गया था। उनमें से कई लड़के फूड प्वाइजनिंग के शिकार हो गये। कईयों को इलाज के लिए अस्पताल में दाखिल कराना पड़ा। बाकी का इलाज उनके टेंट में ही हुआ। बच्चों के टेंट की जो तस्वीर अखबारों में छपी है उसको देख कर लगता है के लावारिस बच्चों को दरी बिछाकर लेटा दिया गया है। उद्घाटन समारोह में गए लोग बता रहे थे कि मैदान में धूल उड़ रही थी, लोग घुटन महसूस कर रहे थे।
पिछले सोलह वर्षों से बिहार में नीतीश जी की सरकार है। नीतीश जी के विषय में प्रचारित है कि ये बहुत व्यवस्थित ढंग से काम करने वाले व्यक्ति हैं। एक-एक चीज पर उनकी नजर रहती है, लेकिन दुर्भाग्य है कि सोलह वर्षों के शासन में साल में एक मर्तबा होने वाला बिहार दिवस कुशलतापूर्वक संपन्न हो जाए, ऐसा शासन तंत्र नीतीश जी बिहार में विकसित नहीं कर पाए हैं।
मामला सिर्फ बिहार दिवस का नहीं है। बिहार के प्रशासन में काम करने की संस्कृति बन ही नहीं पाई। जो कुछ भी था, पिछले सोलह वर्षों में वह समाप्त हो गया। सरकार को चिट्ठी लिखिए, जवाब नहीं मिलता है। बहुत कम पदाधिकारी हैं जो फोन उठाते हैं। साधारण काम के लिए दफ्तरों का चक्कर लगाते लगाते लोग हताश होकर बैठ जाते हैं। हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं होता है। आदेश का अनुपालन कराने के लिए लोग विधायक और मंत्री के यहां दौड़ते रहते हैं, जिनके पास साधन है वे कंटेम्ट में पुन: कोर्ट जाते हैं।
“जो कुछ भी था, पिछले सोलह वर्षों में वह समाप्त हो गया। सरकार को चिट्ठी लिखिए, जवाब नहीं मिलता है। बहुत कम पदाधिकारी हैं जो फोन उठाते हैं। साधारण काम के लिए दफ्तरों का चक्कर लगाते लगाते लोग हताश होकर बैठ जाते हैं।“
ऐसा नहीं है कि नीतीश जी अपने प्रशासनिक तंत्र की हालत से अनभिज्ञ हैं। मुख्यमंत्री का जनता दरबार ऐसा जरिया है जिसके माध्यम से उनको अपनी प्रशासनिक सड़ांध की खबर लगातार पहुँचती रहती है, लेकिन कभी इन्होंने इस जानकारी का इस्तेमाल अपने तंत्र को सुधारने के लिए नहीं किया। हास्यास्पद स्थिति तो तब लगी जब मुख्यमंत्री के दरबार में एक ऐसा मामला आया जिसमें विद्यार्थी के पहचान कार्ड में नाम लड़के का था और तस्वीर लड़की की थी। तस्वीर बदलवाने के लिए सरकारी दफ्तरों में दौड़ते दौड़ते थक जाने के बाद वह लड़का मुख्यमंत्री जी के दरबार में आया था। नीतीश जी को अपने प्रशासनिक तंत्र की इस सड़ाध को देखकर शर्मिंदगी एहसास तक नहीं हुआ।
शिवानंद तिवारी ने लिखा है कि बिहार दिवस एक अवसर था नीतीश जी को अपनी सरकार की कुशलता और क्षमता दिखाने का। जो बच्चे फ़ूड प्वाइज़निंग के शिकार हुए वे सरकार के अतिथि थे। उनके माता-पिता ने नीतीश जी की सरकार पर भरोसा कर अपने बच्चों को पटना भेजा होगा। सरकार को उन बच्चों के अभिभावकों से माफ़ी माँगनी चाहिए।
“बच्चों ने कहा कि बुधवार शाम को नाश्ते में खाजा-गाजा दिया गया है। खाने के बाद से कमजोरी, उल्टी और चक्कर आने लगा। इधर, जिन बच्चों ने बुधवार की रात पनीर और चने की दाल की सब्जी खाई उनकी हालत गुरुवार की सुबह बिगड़ी। इतना ही नहीं, पानी पीकर भी कुछ बच्चों ने अस्वस्थ होने की बात कही। टैंकर में भरा पानी बोतलों में भरकर बच्चों को दिया गया था।”
बच्चे कैसे बीमार पड़े? यह तक कुछ भी साफ नहीं
पटना के गांधी में आयोजित बिहार दिवस समारोह में शामिल 300 से अधिक बच्चे बीमार हो गए थे। कार्यक्रम के अंतिम दिन बच्चों में कमजोरी, चक्कर आना, सिर व शरीर दर्द, बुखार, उल्टी एवं दस्त की शिकायत मिली थी। बुधवार शाम को कुछ बच्चे बीमार हुए जिनकी संख्या गुरुवार को सैकड़ों में पहुंच गई। घटना के बाद गांधी मैदान में बने अस्थायी अस्पताल में 157 बच्चों का पंजीयन कराकर इलाज कराया गया। बच्चे कैसे बीमार पड़े? यह अभी साफ नहीं हो सका है। शुक्रवार को मामले ने तूल पकड़ लिया है। मीडिया से बातचीत में शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि सभी बच्चे स्वस्थ होकर घर चले गए हैं। अब कोई अस्पताल में भर्ती नहीं है। मंत्री ने कहा कि मामले को लेकर मजिस्ट्रेट स्तर की जांच के आदेश दिए हैं। जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।