पटना : कोरोना वायरस पर पूरी दुनिया में लगातार शोध हो रहे हैं। इन्हीं शोधों में अब न्यूयॉर्क के माउंट सिनाई के इकॉन स्कूल ऑफ मेडिसिन का शोध पूरी दुनिया को राहत देने वाला साबित हो सकता है। दरअसल, इन शोधकर्ताओं का कहना है कोरोना से संक्रमित व्यक्ति ठीक हो जाने के बाद दूसरे मरीजों के लिए मददगार साबित हो सकता है। कोरोना से स्वस्थ हो चुके मरीजों के ब्लड से प्लाज्मा निकालकर दूसरे मरीज को दिए जाने पर उसके स्वस्थ होने की उम्मीद रहती है। दरअसल, स्वस्थ मरीज के खून से प्लाज्मा निकालकर दूसरे संक्रमित में डालने की बात पर यह बात कही जा रही थी कि यह तभी काम करेगा जब पहला मरीज कोरोना से गंभीर रूप से संक्रमित हुआ हो। कोरोना से हल्के संक्रमित के स्वस्थ होने पर उसके खून से प्लाज्मा निकालकर दूसरे मरीज को देने पर कोई फायदा नहीं होगा। लेकिन, न्यूयॉर्क के माउंट सिनाई के इकॉन स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं का कहना है कि 1343 मरीजों के अध्ययन में पहले के दावे सही नहीं पाए गए हैं। यानी आंशिक रूप से संक्रमित मरीज ठीक होने के बाद बिल्कुल दूसरे मरीज के इलाज में मददगार बन सकता है। शोध की रिपोर्ट जमा करने वाली वायरोलॉजिस्ट फ्लोरियन क्रेमर ने कहा कि यह अंधकार में उम्मीद की एक किरण है, क्योंकि कोरोना वैक्सीन कब तक विकसित होगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। फिलहाल प्लाज्मा ट्रीटमेंट से मरीजों को ठीक किया जा सकता है।
624 लोगों के परीक्षण में एंटीबॉडी की बात सही मिली
शोधकर्ताओं की टीम ने 624 लोगों का परीक्षण किया। इसमें गंभीर संक्रमित 511, हल्के 42 और 71 बेहद कम संक्रमित वाले मरीजों में एंटीबॉडी विकसित हुई। डॉ. एनिया वेजनबर्ग कहती हैं कि यदि इस रिपोर्ट को मान्यता मिलती है तो ठीक हुए गंभीर ही नहीं, हल्के और शुरुआती लक्षण वाले मरीज भी प्लाज्मा ट्रीटमेंट में योगदान दे सकेंगे। इधर, इंग्लैंड ने कोरोना को लेकर एंटीबॉडी जांच को मंजूरी दे दी है। ब्रिटेन में कोरोना की चपेट में आए 40 हजार से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं।