पटना। जी हाँ, माना जाता है कि बारूद के ढेर पर बैठे मोकामा को सुलगाने में पप्पू देव ने बड़ी भूमिका निभाई थी। बिहार के कोसी के कछार में मोटरसाइकिल छीनने से शुरू हुई पप्पू देव की आपराधिक यात्रा को बड़ा मुकाम भी पटना जिले के मोकामा में मिला और उसके मिटने की कहानी भी यहीं गढ़ी गई।
यह सन 1990 का दशक है। 1995 आते आते लालू राज में अपराध चरम पर पहुंच गया था और मोकामा अब बिहार के कई दुर्दांत अपराधियों की शरणस्थली बनने लगा था। इसी दौरान मोकामा में कई आपराधिक गुट उभरे जिनकी अदावत में यहां की गलियों में गोलियों की तड़तड़ाहट जब तब सुनी जाती। नाटा सिंह, सूरज सिंह, राजू सिंह के नाम पर कई गिरोह सक्रिय हो चुके थे। 15 से 20 साल के दर्जनों युवकों के कंधे पर एके 47 जैसे हथियार आ चुके थे।
क्विक मनी और खुद को बाहुबली कहाने की ऐसी लत लगी कि एक के बाद एक कई युवा इन गिरोहों से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़ गए। ऐसा ही एक नाम था निरजेश उर्फ नागा। छोटी उम्र बड़ी ख्वाहिश पाले नागा पर तब मोकामा में सबसे बड़ा षड्यंत्र रचने का आरोप लगा। 11 दिसम्बर 1997 की सर्द सुबह में मोकामा के मोलदियार टोला में राजू सिंह और आधा दर्जन साथियों को गोलियों से भून डाला गया। आरोप नागा पर लगा। इस सामूहिक हत्याकांड के बाद मोकामा में अपराधियों के एक बड़े गिरोह का सफाया हो गया। वहीं वर्ष 1998 में जब लालू सरकार में मंत्री रहे बृज बिहारी को पटना के एक अस्पताल के वीवीआईपी वार्ड में अति सुरक्षा घेरे में गोलियों से भून दिया गया।
आईजीआईएमएस पटना में 13 जून 1998 को शाम 8.15 बजे अस्पताल में ही बृज बिहारी की एके 47 से हत्या कर दी गई। लालूराज में यह अब तक की सबसे बड़ी हत्या थी। उस रात पूरे मुजफ्फरपुर से मोकामा तक सब जगह जश्र मनाया गया।
हत्याकांड में मुजफ्फरपुर से मोकामा तक के कई बाहुबलियों के नाम आए। सूरजभान सिंह, श्रीप्रकाश शुक्ला, मुन्ना शुक्ला, मंटू तिवारी, राजन तिवारी, भूपेंद्र नाथ दूबे, सुनील सिंह, अनुज प्रताप सिंह, सुधीर त्रिपाठी, सतीश पांडे, ललन सिंह, नागा, मुकेश सिंह, कैप्टन सुनील उर्फ सुनील टाइगर जैसे नाम थे।
बृज बिहारी हत्याकांड में नागा का नाम आने के बाद साफ हो गया कि अब वह सूरजभान गिरोह का प्रमुख शूटर बन चुका है। इसी दौरान सूरजभान की गिरफ्तारी होती है और फिर वर्ष 2000 का विधानसभा चुनाव होता है। उन चुनाव के पहले मोकामा में शांति की एक नई पटकथा लिखी गई। सूरजभान और नाटा सिंह ने एक दूसरे का साथ देने का निर्णय किया। पिछले डेढ़ दशक में एक दूसरे के दर्जनों साथियों और सगे सम्बंधियों की हत्या का आरोप दोनों पर लग चुका था। कहते हैं फरवरी 2000 में तब सूरजभान के राइट हैंड माने जाने वाले ललन सिंह जान हथेली पर रखकर नाटा से समझौता करने पहुंचे तो यह उनके साहस का अद्यमय उदाहरण था। खैर शांति का सूरज मोकामा में उग चुका था और विधानसभा चुनाव 2000 में मोकामा से सूरजभान सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर रिकॉर्ड वोटों के अंतर से राजद प्रत्याशी दिलीप सिंह (मोकामा के मौजूदा विधायक अनंत सिंह के भाई) को हराया। यह बिहार के राजनीतिक इतिहास में किसी निर्दलीय प्रत्याशी की सबसे बड़ी जीतों में एक जीत थी।
लंबे अरसे से जिस मोकामा की फिजां में बारूद की गंध घुल गई थी, अचानक से सब बदल गया। सारे गिरोह एक हो गए थे। हाँ बिहार, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से कई मोस्ट वांटेड का मोकामा आना नहीं रुका था। इसमें एक नाम पप्पू देव का था।
पूर्णिया में पप्पू देव के पिता बिजली विभाग में कार्यरत थे। इसी पूर्णिया में बूटन सिंह गिरोह सक्रिय था। 1994-95 के दौर में किशोरावस्था में ही जब पप्पू देव छोटे मोटे अपराध को अंजाम दे रहा थे तब उसकी पहचान बूटन सिंह से हुई। च उसके गिरोह में शामिल हो गया। तब बिहार में गिनती के अपराधियों के पास एके 47 राइफल था जिसमें बूटन सिंह भी शामिल था। पप्पू देव की किसी बात को लेकर बूटन सिंह से चिढ़ हुई और एक दिन वह बूटन की बेशकीमती यूएसए कार्बाइन और एके 47 लेकर फरार हो गया। फिर इसका आतंक सहरसा से पैतृक गांव बिरहा तक बढ़ने लगा। इसी दौरान यह मोकामा भी आने लगा और यहां इसकी पहचान नागा से हुई।
कहते हैं सूरजभान के 2000 विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उनके जीवन मे बड़ा बदलाव आ गया। इसमें मुख्य धारा से जुड़कर जीवन जीना सबसे अहम था। यानी अब सूरजभान पर अपराध के सीधे आरोप लगने बंद हो चुके थे। वहीं नागा जैसे युवा की चाहत तेजी से पैसे कमाने की थी और यही चाहत पप्पू देव की भी थी।
बिहार में तब अपहरण एक ‘उद्योग’ बन गया था। अपरहण उद्योग का सबसे नाम पप्पू देव था। सहरसा बाजार में व्यापारियों से रंगदारी वसूलने, मोटरसाइकिल और कार छिनने जैसे अपराध को अंजाम देते देते पप्पू को सबसे ज्यादा पैसा अपहरण में दिखने लगा। कहते हैं ऐसे ही किसी अपहरण के बाद जब वह और नागा उसे लेकर मोकामा में ठिकाना बनाये हुए था तो इसका उसके कई साथियों ने विरोध किया। सूरजभान, ललन सिंह अब फिर से अपहरण के कारण मोकामा का नाम बदनाम होता नहीं देखना चाहते थे।
वहीं पप्पू देव और नागा को यह नागवार गुजरा। बाद में किसी मुद्दे पर इन दोनों ने अपनी अलग राह बना ली और खुले तौर पर सूरजभान-ललन के खिलाफ बंदूक लहराने लगे। कहते हैं तब नागा को पप्पू देव ने उकसाया। पप्पू देव भी राजनीति में आना चाहता था। वह भी अब सहरसा, पूर्णिया और नेपाल से निकलकर तिरहुत, पटना से उत्तर प्रदेश तक अपनी धमक जमाना चाहता था। इसके लिए उसे मोकामा से बेहतर कोई जगह नहीं लगी। यहां उसे साथ देने के लिए नागा तैयार बैठा था। फिर तो देखते ही देखते दोनों के नाम पर अपहरण और हत्या के कई मामले दर्ज हो गए। क्या व्यापारी, क्या डॉक्टर या पुलिस वाले जिसे चाहा उसे टपकाया और फिरौती वसूली।
यहां तक कि नागा ने सूरजभान-ललन और उसके साथियों के खिलाफ जो अदावत शुरू की थी उसे पप्पू देव ने नागा के हाथों में एके 47 देकर और मजबूत कर दिया। एक दर्जन अत्याधुनिक हथियारों से लैस नागा गिरोह की तूती जल्द ही पूरे बिहार और झारखंड में बोलने लगी। इसका सबसे कारण पप्पू देव को माना गया। कहा जाता है कि वह चाहता था कि मोकामा के सभी गिरोह एक दूसरे की जान के दुश्मन बने रहें और वह बिहार के अंडर वर्ल्ड की दुनिया का बेताज बादशाह बन जाए।
2002 में नेपाल के विराटनगर से तुलसी अग्रवाल का अपहरण होता है। सूत्र कहते हैं कि उस समय पप्पू देव ने 4 करोड़ रुपए की फिरौती वसूली थी। हालांकि कुछ लोग इसे एक करोड़ रुपए बताते हैं। लेकिन माना जाता है कि यह अपहरण के मामले में वसूली गई सबसे बड़ी फिरौती में एक है। हाँ यह भी हुआ कि इस अपहरण ने भारत सरकार और नेपाल सरकार तक को झकझोर दिया। इसी तरह मुजफ्फरपुर के सब रजिस्ट्रार के अपहरण के बाद भी लाखों लाख रुपए की फिरौती वसूलने की बात आई। कहते हैं ऐसे आधा दर्जन अपहरण के मामलों में पप्पू देव और नागा साथ रहे। लेकिन फिरौती की बड़ी रकम जरूरी वसूली जा रही थी पर नागा को बेहद छोटा हिस्सा मिल रहा था।
सूत्र कहते हैं तब नागा को पप्पू देव की नीयत पर खोट होने लगा। इसी क्रम में एक दिन पप्पू देव मोकामा से पटना गया। उस दिन उसके तीन एके 47 मोकामा में नागा के पास थे। पप्पू पर गुस्साए नागा ने तय किया कि आज पटना से पप्पू जब लौटेगा तो उसे खत्म कर देंगे। फरमान जारी हो गया लेकिन, इसी बीच किसी तरह इसका पता पप्पू देव को चल गया। कहते हैं उस रात वह जान बचाकर किसी तरह मोकामा से फरार हो गया। लेकिन, उसके अत्याधुनिक हथियारों का जखीरा मोकामा में नागा के पास रह जाता है। जैसे लूटन सिंह का हथियार लेकर पप्पू देव निकल भागा था, कुछ वैसा ही उसके साथ यहां हुआ।
हालांकि मोकामा से उसके भागने में बहुत देर हुई। इस दौरान उसकी सह पर मोकामा को मरघट बनाने का काम नागा और अन्य प्रतिद्वंद्वी गिरोहों के बीच आए दिन हुई गोलीबारी में सबने देखा। वहीं नागा से लगे जोरदार झटके से पप्पू देव उबर नहीं पाया। मोकामा से भगाने के कुछ महीनों बाद ही नेपाल में उसे नकली नोट के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। इधर कुछ वर्ष बाद नागा भी जमशेदपुर के साकची में गिरफ्तार हुआ और एक बार जेल से भागने के बाद फिर से हुई गिरफ्तारी के बाद अब तक जेल में है।
कल जब पप्पू देव की मौत की खबर आई तो सहसा याद आया कैसे हमारे गांव को शांति को भंग करने में तब पप्पू देव ने भूमिका निभाई थी। कैसे हमारे गांव के दर्जनों युवाओं की मौत का एक कारण यह भी था। आज पप्पू देव की मौत के बाद पुलिस पर बड़े आरोप जरूर लगे हैं और यह जांच का भी विषय है कि पुलिस कैसे किसी की हत्या कर सकती है, जैसा पप्पू समर्थक आरोप लगा रहे हैं। पर हमारे मोकामा को जो जख्म इन लोगों से मिला उसका हिसाब भी तो आज तक नहीं हुआ?
(यह आलेख मोकामा निवासी पत्रकार प्रियदर्शन शर्मा के फेसबुक पोस्ट से लिया गया है।)