1991 में दो प्रधानमंत्रियों की हत्या के बाद देश में आतंकवाद बढ़ रहा था और समाज में जातिगत संघर्ष चल रहा था। उस वक्त मध्य वर्ग एक ऐसा नेता चाहता था, जो व्यवस्था बहाल करने और कठोर उपायों के माध्यम से अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में सक्षम हो। उस समय इसी आशा के साथ पी.वी. नरसिम्हा राव (PV Narasimha Rao) को देश की बागडोर सौंपी गई थी। वर्ष 1991 में पी.वी. नरसिम्हा राव स्वतंत्र भारत के नौवें प्रधानमंत्री बने थे। वह 1971 से 1973 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे। आज उनकी सौंवी सालगिरह है। उनको भारत के पहले दक्षिण भारतीय प्रधानमंत्री बनने का भी गौरव प्राप्त है।
राजनीति से रिटायर्ड होने के बाद मजबूरन राजनीति में लौटना पड़ा
1991 में नरसिम्हा राजनीति से रिटायर्ड हो चुके थे, लेकिन कांग्रेस के अध्यक्ष राजीव गाँधी की हत्या होने के बाद उन्हें मजबूरन राजनीति में लौटना पड़ा था। उन्हीं की बदौलत 1991 के चुनाव में कांग्रेस ने सर्वाधिक सीटें हासिल की थी। और अब तक नेहरु गाँधी परिवार के बाहर के वे पहले प्रधानमंत्री है, जिन्होंने पूरे पांच साल तक देश के प्रधानमंत्री बनकर देश की सेवा की। 9 दिसम्बर 2004 को राव को हार्ट अटैक आया था और इसके तुरंत बाद उन्हें ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में भर्ती किया गया और भर्ती करने के 14 दिनों बाद 83 साल की आयु में उनकी मृत्यु हो गयी।
आंध्र प्रदेश के सामान्य परिवार में हुआ था जन्म
पी.वी. नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून, 1921 को करीमनगर, आंध्र प्रदेश, में एक सामान्य परिवार में हुआ था। उनके पिता पी. रंगा राव और माता रुक्मिनिअम्मा कृषक थे। राव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा करीमनगर जिले के भीमदेवरापल्ली मंडल के कत्कुरू गाँव में अपने एक रिश्तेदार के घर रहकर ग्रहण की। इसके बाद उन्होंने ओस्मानिया विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद नागपुर विश्वविद्यालय के अंतर्गत हिस्लोप कॉलेज से लॉ की पढाई की। राव की मातृभाषा तेलुगु थी, पर मराठी भाषा पर भी उनकी जोरदार पकड़ थी। आठ भारतीय भाषाओं (तेलुगु, तमिल, मराठी, हिंदी, संस्कृत, उड़िया, बंगाली और गुजराती) के अलावा वे अंग्रेजी, फ्रांसीसी, अरबी, स्पेनिश, जर्मन और पर्शियन बोलने में पारंगत थे। साहित्य के अलावा उन्हें कंप्यूटर प्रोग्रामिंग जैसे विषयों में भी रूचि थी।
स्वतंत्रता आंदोलन में निभाई थी सक्रिय भागीदारी
पी.वी. नरसिम्हा राव ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई थी। प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने नई आर्थिक नीति की शुरुआत की जिसमें देश की अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ने का प्रयास किया गया। उनका राजनैतिक जीवन काफी विवादास्पद रहा लेकिन अपने आर्थिक सुधारों और विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता के रूप में वह सदैव याद किए जाते रहेंगे। विदेश मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होनें अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के क्षेत्र में अपनी शैक्षिक पृष्ठभूमि एवं राजनीतिक तथा प्रशासनिक अनुभव का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया। प्रभार संभालने के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने जनवरी 1980 में नई दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के तृतीय सम्मेलन की अध्यक्षता की थी।
राव की उम्मीदवारी को राष्ट्रपति आर वेंकटरमन से मिला था समर्थन
राजीव गांधी की हत्या के बाद, पी.वी. नरसिम्हा राव, निस्संदेह, गुट-ग्रस्त इंदिरा कांग्रेस में सबसे कम अस्वीकार्य नेता थे। उस समय उनके प्रतिद्वंद्वियों, एन. डी. तिवारी, अर्जुन सिंह और शरद पवार ने एक-दूसरे की तुलना की। राव की उम्मीदवारी को राष्ट्रपति आर वेंकटरमन से मिले दृढ़ समर्थन से भी फायदा हुआ, जिन्होंने संख्या का प्रमाण मांगे बिना सरकार बनाने के लिए सबसे बड़े राजनीतिक गठन के नेता को आमंत्रित करने का एक नया सिद्धांत अपनाया। 1995 के 15 अगस्त के अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि भारत में राजनीतिक स्थिरता भी है, सामाजिक समरसता भी है और आर्थिक सक्षमता भी है।