श्वसन तंत्र के रोगियों के लिए कोरोना-काल एक चुनौतीपूर्ण आपातकालीन स्थिति के रूप में उभरकर आया है। “ऐसा इसलिए है कि कोरोनावायरस शुरुआत में फेफड़ों को संक्रमित करता है,” यह कहना है डॉ बरनॉली दत्ता का जोकि मेदांता अस्पताल के रेसपिरेटरी ऐंड स्लीप मेडिसिन विभाग में एसोसिएट डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं।
डॉ बरनॉली दत्ता बताती हैं कि कोरोनावायरस से संक्रमित होने के पश्चात् साँस लेने में दिक्कत या छाती में तकलीफ़ कम करने के लिए कुछ ज़रूरी ऐहतियात अवश्य बरतने चाहिए। मसलन; समय रहते कोरोनावायरस की जाँच पूर्णरूपेण होनी चाहिए। कोरोना का जाँच-ब्यौरा आने पर शीघ्र योग्य चिकित्सकों से परामर्श करें। और अपने आप को परिवार के सदस्यों से अलग रखें।
मंद लक्षणों वाले कोरोनावायरस से संक्रमित रोगी घर में रह सकते हैं। ऐसे रोगी टेलीमेडिसिन के माध्यम से अपने चिकित्सकों से सलाह ले सकते हैं।
डॉ दत्ता का कहना है कि घर में रहने वाले संक्रमित रोगियों को अपने शरीर का तापमान, रक्तचाप, रक्त में ऑक्सीजन का संतृप्ति (सेचुरेशन) स्तर, नाड़ी का स्पंदन-स्तर खुद से जाँचते रहना है।
किसी भी संकटपूर्ण लक्षणों के परिलक्षित होने पर जैसे : छाती में भारीपन, शरीर का नीला होना, रक्त में ऑक्सीजन कम होना, दिल की धड़कन का तेज़ होना; ऐसी परिस्थितियों में रोगी को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता है। अस्पताल में भर्ती होने वाले रोगियों को ऑक्सीजन-सपोर्ट की आवश्यकता होती है। श्वसन तंत्र से जुड़े व्यायामों को संक्रमण के प्रत्येक चरण पर रोगियों को करना आवश्यक है ताकि ऑक्सीजन-स्तर में कमी ना आये।
दमा या क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को जो इन-हेलर का इस्तेमाल करते हैं; उन लोगों को संक्रमण काल में इन-हेलर का इस्तेमाल जारी रखना चाहिए। फेफड़ों में वायु की थैलियों (ऐल्वियोलाइ) में सूजन (वातस्फ़ीति) और लंबे समय से साँस की नली में सूजन (क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस) क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी रोगों के लक्षण हैं। ऐसे रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए पूर्ण रूप से ऐहतियात बरतने की आवश्यकता है।
प्रस्तुति : ज्ञानभद्र। स्वास्थ्य मामलों पर ज्ञानभद्र हमेशा देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लिखते रहते हैं।
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