पटना। स्वस्थ जीवन जीने के लिए यह अति आवश्यक है कि हम अपने शरीर को जानें; शरीर में होने वाली कमियों और परिवर्तनों को पहचानें। स्त्रियों के लिए विशेषकर यह महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि पूरे जीवनकाल में उनके शरीर में विभिन्न प्रकार के काफ़ी परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं। ऐसा अवलोकन किया गया है कि स्त्रियों के शरीर में कुछ असामान्य परिवर्तनों में स्तन-कैंसर रोग प्रमुखता से उभरकर आता है।
“स्तन-स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि खुद जागरूक रहें, खुद स्तनों का शारीरिक परीक्षण करें और किसी प्रकार के असामान्य परिवर्तन दिखने पर अपने चिकित्सक से परामर्श लें,” यह कहना है डॉ कंचन कौर का जोकि गुड़गाँव-स्थित मेदांता मेडिसिटी अस्पताल के ब्रेस्ट क्लीनिक विभाग में डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं।
डॉ कौर आगे बताती हैं कि भारतीय स्त्रियों में स्तन-कैंसर रोग, विशेषकर शहरों और नगरों में रहनेवालों में प्रमुखता से उभरकर आ रहा है। यद्यपि पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में स्तन कैंसर रोगियों की संख्या कम है। लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि स्तन-कैंसर की वजह से भारत में मृत्य-दर ज़्यादा है।
अब प्रश्न यह उठता है कि स्तन-कैंसर रोग के संकेत एवं लक्षण क्या हैं?
इसके उत्तर में डॉ कौर का कहना है कि स्तन में गाँठ की उपस्थिति स्तन-कैंसर रोग के साधारणतया लक्षण या संकेत के रूप में दिखते हैं। अधिकांश स्थितियों में इस प्रकार के गाँठ दर्दरहित होते हैं। पीड़ाहीन होने की वजह से, स्त्रियाँ इस प्रकार के गाँठ पर ध्यान नहीं देती हैं। जब यह गाँठ बड़ा आकार धारण करती है तब रोग की उग्रता काफ़ी ज़्यादा हो जाती है।
दूसरे अहम लक्षण के बारे में विश्लेषण करते हुए डॉ कौर कहती हैं कि निप्पल का अंदर की दिशा में जाना, निप्पल की त्वचा का लाल होना या निप्पल से तरल पीप का निकलना। अन्य लक्षणों में प्रमुख हैं : स्तन की त्वचा का लाल होना जैसी स्थिति जिसमें त्वचा का लालपन नहीं हट रहा हो तथा काँख में किसी प्रकार के गाँठ की उपस्थिति।
अब प्रश्न यह है कि भारत में स्तन-कैंसर रोग से संबंधित मृत्य-दर ज़्यादा क्यों है? इसके जवाब में डॉ कौर बताती हैं कि ऐसा अवलोकन किया गया है कि भारत में 70 से 80 फ़ीसदी स्तन-कैंसर रोग, रोग के अंतिम चरण में पता लगते हैं। इसका मुख्य कारण जानकारी के अभाव का होना है। स्त्रियाँ अपने स्तनों की डॉक्टरी-जाँच नियमित रूप से नहीं कराती हैं।
ऐसा होता है कि उन्हें पता नहीं चल पाता है कि उनके स्तनों में किसी प्रकार के गाँठ उत्पन्न हो रहे हैं। ऐसा भी अवलोकित किया गया है कि अधिकाँश स्त्रियाँ, स्तन में गाँठ का पता लगने के बावजूद चिकित्सीय परामर्श नहीं लेती हैं; और गाँठ की उपेक्षा करती हैं। इस गाँठ का लंबे समय तक चिकित्सा नहीं होने पर, कैंसर रोग शरीर में फैल जाता है तथा जीवित रहने की संभावनाएँ कम हो जाती हैं। अगर कैंसर रोग के शुरुआती चरण में रोग का पता लगाकर इलाज किया जाए, तो रोगमुक्त होने की संभावनाएँ 98 फ़ीसदी हो जाती हैं।
स्तन-कैंसर रोग का पता शुरुआती चरण में लगाने के लिए सर्वोत्तम कार्यविधि क्या है? इस प्रश्न के उत्तर में डॉ कौर परामर्श के रूप में बताती हैं कि दो विधियाँ हैं : (1) स्तन का नियमित रूप से स्वतः परीक्षण करना; (2) स्तनों की नियमित रूप से मेमोग्राम जाँच (स्तन की एक्स-रे जाँच) करवाना।
डॉ कौर सलाह बतौर कहती हैं कि सभी स्त्रियों को प्रत्येक महीने कम से कम एक दफ़ा अपने स्तन का स्वतः परीक्षण करना चाहिए। इस परीक्षण जाँच के लिए उपयुक्त समयकाल महावारी समाप्त होने के 7-10 दिनों बाद होता है। स्त्रियों को वर्ष में एक दफ़ा स्तन-कैंसर विशेषज्ञ से जाँच एवं परामर्श करवाना चाहिए। स्त्रियों को 35 वर्ष की उम्र में पहली मेमोग्राम-जाँच करवानी चाहिए। ऐसा इसलिए आवश्यक है कि इस मेमोग्राम-जाँच के परिणामों एवं निष्कर्ष तथा स्त्रियों के निजी जोखिमों के आधार पर, चिकित्सक परामर्श देंगे कि स्त्रियों को लगातार कितने दफ़ा मेमोग्राम-जाँच करवानी चाहिए। डॉ कौर बताती हैं कि मेमोग्राम-जाँच की यह ख़ासियत है कि इसके माध्यम से लघु कैसंर रोग का पता चल जाता है, जबकि नैदानिक परीक्षण से यह पता लगाना संभव नहीं हो पाता है।
डॉ कौर का यह मानना है कि अगर कैंसर रोग का शुरुआती चरण में पता लग जाए, तो कैंसर को पूर्णतया हटाया जा सकता है। इस शुरुआती प्रक्रिया में स्तन को हटाने की ज़रूरत नहीं होती है। इस शल्य चिकित्सा विधि को “लुम्पेक्टोमी” कहते हैं। और यह सुरक्षित विधि है।
स्तन कैंसर की उत्पत्ति के जोखिम भरे कारक क्या होते हैं? इस महत्वपूर्ण पहलु पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ कौर कहती हैं कि स्तन-कैंसर रोग के उत्पन्न होने के पीछे कई कारक होते हैं। तात्पर्य यह है कि संयुक्त रूप से ये कारक कैंसर रोग की उत्पत्ति करते हैं। उम्र में वृद्धि के साथ-साथ स्तन कैंसर रोग की संभावनाओं में इजाफ़ा होता है। 50 वर्ष से ज़्यादा की उम्रवाली स्त्रियों में स्तन कैंसर रोग ज़्यादा संख्या में पाये जाते हैं।
स्तन कैंसर रोग के जोखिम उस स्थिति में ज़्यादा होते हैं अगर पारिवारिक इतिहास में पहले किसी सदस्य को स्तन या अंडाशय का कैंसर-रोग था। जोखिम और ज़्यादा हो जाते हैं अगर परिवार का सदस्य (माता, पिता, बहन या पुत्री) पूर्व में स्तन कैंसर से पीड़ित थे; या उक्त सदस्य की उम्र 50 वर्ष से कम थी, जब उन्हें कैंसर रोग हुआ था। ऐसी परिस्थिति में जोखिम और ज़्यादा हो जाते हैं, यह कहना है डॉ कौर का।
दूसरे अहम पहलु यह हैं कि ऐसी स्त्रियाँ जो उम्रदराज होती हैं; जब उनका पहला बच्चा जन्म लेता है; तो ऐसी स्त्रियों में भी स्तन-कैंसर होने की जोखिम-भरी संभावनाएँ ज़्यादा होती हैं। साथ ही ऐसी स्त्रियाँ जिनके बच्चे नहीं होते हैं; उन स्त्रियों में स्तन-कैंसर के जोखिम ज़्यादा होते हैं। ऐसी स्त्रियाँ जिनकी महावारी 12 वर्ष की उम्र से पहले शुरू हुई हो; तथा ऐसी स्त्रियाँ जो 55 वर्ष की उम्र के पश्चात् रजोनिवृत्ति दौर से गुज़री हैं, ऐसी स्त्रियों में भी स्तन-कैंसर के जोखिम-भरे कारक ज़्यादा होते हैं। ऐसी स्त्रियाँ जिन्होंने कई वर्षों तक रजोनिवृत्ति-संबंधी हार्मोन चिकित्सा उपचार कराया हो, ऐसी स्त्रियों में भी कैंसर रोग की संभावनाएँ अधिक होती हैं। मोटापा और निष्क्रीय रूप से जीवन जीनेवाली स्त्रियों में स्तन-कैंसर की संभावनाएँ ज़्यादा होती हैं। मद्यपान करने वाली स्त्रियों में भी स्तन-कैंसर रोग की संभावनाएँ अधिक होती हैं, डॉ कौर का कहना है।
प्रस्तुति – ज्ञानभद्र।
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