पटना : बिहार में सत्ता बदलाव के संकेत फिर मिल रहे हैं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को जमानत मिलने के बाद से यही इसकी कयास लगाई जा रही थी। अब वह कयास मजबूती पकड़ रही है। फिलहाल लालू दिल्ली में अपने बेटी मीसा भारती के आवास पर हैं, लेकिन जल्द वह पटना आ सकते हैं। लालू दिल्ली में बैठे-बैठे बिहार के पिछड़ी जाति के विधायकों को एकजुट कर रहे हैं। इसमें उन्हें पहले भी सफलता मिल चुकी है। इसके संकेत पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और बिहार सरकार में मंत्री मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के रवैये से प्रबल हो रहे हैं। इधर, लालू की इस तिकड़म से सत्तारूढ़ी दल जदयू और भाजपा में हलचल बढ़ गई है।
1990 में लालू ने आडवाणी के रथ को रोक बदल दी थी राजनीतक हवा
1990 में राम मंदिर के मुद्दे को लेकर भाजपा पूरे देश में आक्राम थी। मुद्दे पर समर्थन जुटाने के लिए भाजपा के वरीय नेता लालकृष्ण आडवाणी देश भर में यात्रा कर रहे थे। बिहार में उनके रथ को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने रोक दिया था। इसके बाद पूरे देश की राजनीति बदल गई थी, जिसके बाद भाजपा लोकसभा चुनाव में नंबर एक पार्टी बनने से चूक गई थी।
लालू ने इंद्रकुमार गुजराल और एचडी देवगौड़ा को पीएम बनने में की मदद
लालू प्रसाद पर लिखी गई किताब गोपालगंज टू रायसीना माय पॉलिटिकल जर्नी में किताब के लेखक नलिन वर्मा ने कहा कि लालू प्रसाद 1990 में मुख्यमंत्री और 2000 तक गेम चेंजर के रूप में रहे। उन्होंने इंद्रकुमार गुजराल और एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई। लालू ने ही अटल बिहारी वाजपेयी को दोबारा प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया। लालू की मंडल राजनीत के जवान में भाजपा ने कमंडल राजनीत की शुरुआत तो की पर सफल नहीं हुए।
1999 में भाजपा को केंद्र में रोका
लालू प्रसाद ने 1990 में कांग्रेस जब कमजोर हो रही थी तो लालू ने अपना समर्थन दिया। कांग्रेस में सोनिया गांधी के विरोध को दबाने के लिए सोनिया का खुलकर समर्थन किया। इसका फायदा फिर 2004 में कांग्रेस को हुआ। कांग्रेस और राजद ने बिहार में दो तिहाई सीट जीत ली और भाजपा में फिर केंद्र में सरकार नहीं बना सकी। तब कांग्रेस ने लालू प्रसाद को रेल मंत्री बनाया था।
भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए कट्टर विरोधी से मिलाया हाथ
लालू प्रसाद ने अपने सबसे बड़े विरोधी से भी हाथ मिलाया। 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू की पार्टी राजद और उनके सबसे बड़ी विरोधी नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा। इस कारण भाजपा बिहार की सत्ता नहीं पा सकी। हालांकि कुछ महीनों बाद ही जदयू ने राजद से खुद को अलग कर भाजपा के साथ वापस सरकार बना ली थी।