ऐसी परिस्थितियों को बदल नहीं सकते, पर स्वीकार तो करना ही होगा

आज का समय पूरी मानव जाति के लिए एक इम्तिहान सा है| ये परिस्थतियाँ मानव जाति के संयम, धैर्य, दृढ़ता और इच्छा शक्ति की परीक्षा है| संसार की ये स्थिति भयावह तो है ही लेकिन मानसिक और भावनात्मक स्तर पर बहुतों के भीतर आश्चर्य का भाव पैदा कर रहा है|अब तक ये किसी को नहीं मालूम कि ये वायरस कहाँ से आया, कैसे पैदा हुआ, ये पूरी दुनिया में कब तक मौत का खेल खेलता रहेगा?लेकिन मैं इस पर कोई बात नहीं करने वाला कि ये पैदा कहाँ से हुआ और इससे बचने के क्या नुस्खे हो सकते हैं|न ही ये बात करूँगा कि भारत और दुनिया के अर्थव्यवस्था इससे कितना प्रभावित होगी और न ही ये कि संसार के देशों के राजनैतिक और कुटनीतिक रिश्तों पर कैसा प्रभाव होगा|

मेरा विषय है- ऐसी विकट परिस्थितियों में हमारी और आपकी भावना…
इस दुखद और चुनौती पूर्ण समय में लोग स्वयं को परेशान देख रहे हैं| ये हर व्यक्ति के साथ हो रहा है चाहे वो हुक्मरान हों, नौकरशाह हो, राजनीतिज्ञ कोई व्यवसायी हो, कोई पेशेवर या आम आदमी या औरत| सब व्यग्र हो रहे हैं कि ये कौन सी आफत आन पड़ी है| यह तो सबके जेहन में बात आ गयी है कि ये विपदा का समय है|

आमतौर पर मनुष्य अपने इर्द गिर्द की परिस्थितियों पर काबू पाना चाहता है| वो नहीं चाहता कि कोई ऐसी घटना हो जिससे उसका नुकसान हो| इसके लिए वो अपने चारों तरफ की घटनाओं, गतिविधियों और व्यक्तियों पर ज्यादा से ज्यादा नियंत्रण करना चाहता है| कुछ घटनाओं और व्यक्तियों पर तो उसका प्रभाव काम कर जाता है लेकिन बहुत सी घटनाएं और व्यक्ति अनियंत्रित ही रहते है जिससे वो परेशान रहता है| चुकि हर कोई ऐसे ही प्रयत्नों में लगा है, और हर किसी की इच्छाएं, प्राथमिकताएं, उद्दयेश्य और सुखी रहने के पैमाने भिन्न भिन्न है तो ‘सभी द्वारा घटनाओं को नियंत्रित करने का प्रयास’ आपस में टकराता है| ये बातें सिर्फ व्यक्ति पर ही लागु नहीं होती बल्कि विभिन्न राष्ट्रों, समुदायों, प्रकृति के जीवों आदि पर भी उतना ही लागु होती हैं जितना स्वयं के ऊपर|
तो प्रश्न उठता है कि क्या करना चाहिए?
हमें सीखना चाहिए| हमें वो सीखना चाहिए जो ये घटनाएं हमें सीखाना चाहती हैं| हम अपने स्वयं के अनुभवों और जीवन में घटे घटना क्रम को यदि देखें तो पाते हैं कि ऐसे बहुत सी घटनाएं हुई जिनसे हम प्रसन्न हुए और ऐसे बहुत सी घटनाएं हमें दुखी और कभी कभी बहुत दुखी कर गयी| दुखी करने वाली कुछ घटनाएं तो ऐसी भी हुई जिससे हम अब तक दुखी होते हैं, परेशान होते हैं और भूल नहीं पाते|उन विपरीत परिस्थितियों में जब घटनाओं पर हमारा नियंत्रण नहीं रह जाता तब हम स्वयं को परिस्थतियों के चंगुल में पाते हैं| और कोसते हैं खुद को, ईश्वर को और भाग्य को|

ये घटनाएं और इनसे जुड़े हमारे अनुभव हमें एक ख़ास सत्य से अवगत कराती है| और वो यह कि जीवन में यह जरुरी नहीं की हर परिस्थिति हमारे अनुकूल हो? इसका एक अर्थ ये भी है कि जो परिस्थितिया हमें पसंद नहीं या प्रतिकूल हैं या हमारे नियंत्रण से बाहर होती हैं, उन परिस्थितियों के लिए उत्तरदायी घटनाओं को हम बदल नहीं सकते| क्योंकि घटनाएं हमारे प्रभाव क्षेत्र और नियंत्रण के बाहर हैं| ऐसा इसलिए भी क्योंकि हम अकेले ही सभी घटनाओं के कारक नहीं होते बल्कि अलग अलग व्यक्तियों, प्रक्रियाओं, घटनाक्रमों से जनित परिस्थतियाँ किसी विशेष घटना का कारण बन सकती हैं जिसमे हमारा स्वयं का सहभाग हो सकता है या नहीं भी| दुसरे शब्दों में इसका अर्थ यह है कि किसी घटना के घटने में हमारे अलावा भी बहुत सारे बाहरी बल कार्यरत होते हैं, जिसमें हमारे द्वारा लगाया गया बल नगण्य से लेकर शत प्रतिशत हो सकता है| हमारे कारक होने का यह प्रतिशत भी यह निश्चित कर रहा होता है कि घटना का प्रतिफल हमारे पक्ष में किस हद तक हो सकता है|
अतएव हमें घटनाओं को और उसकी वास्तविकता को स्वीकार करना सीखना होगा|
तो अगला प्रश्न उठता है कि ऐसी परिस्थतियों से कैसे उबरा जाये?
ऐसे में हमें ऐसा मानकर चलना चाहिए ये दी हुई परिस्थितियाँ हैं इनको बदला नहीं जा सकता| हम यदि कुछ कर सकतें हैं तो अपनी रेस्पोंस/ प्रतिक्रिया को बदल सकते हैं और उन प्रतिक्रियाओं के प्रति हम जिम्मेदार हो सकते हैं| न कि घटनाओं या इससे संबंधित व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को बदलने के लिए प्रयासरत रहे|

इसका अर्थ एक उदहारण से समझिये…
नौकरी की तलाश में भटकते एक युवक को बहुत प्रयासों के बाद भी नौकरी नहीं मिलती| नौकरी नहीं मिलने का अर्थ यह नहीं की वो काबिल नहीं, इसका यह मतलब भी नहीं की उसके काबिलियत के लायक कोई नौकरी नहीं बल्कि इसका अर्थ सिर्फ यह है कि  ‘अब तक उसको नौकरी नहीं मिली’| लेकिन हम इसका अर्थ स्वयं से निकाल लेते हैं कि, मैं योग्य नहीं, या मेरे भाग्य में सफलता है ही नहीं, या ईश्वर को मेरी असफलता ही मंज़ूर है|और ऐसा मानकर हम स्वयं को और अपने भाग्य को कोसते रहते हैं|

इसमें सीखने लायक क्या है?
यहाँ इस युवक को सिर्फ इतना ही मानना है कि
• ये दीहुई परिस्थितियां हैं,
• घटनाओं पर किसी का वश नहीं होता
• घटना को बदला नहीं जा सकता हम केवल उसके प्रति अपनीं प्रतिक्रिया या भावना बदल सकते और उस भावना की जिम्मेदारी ले सकते हैं|
• अब यह भावनात्मक प्रतिक्रिया भी बहुत सोची समझी होनी चाहिए क्योंकि आप इसकी जिम्मेदारी भी ले रहे हैं, इसलिए यह भावना आपको मानसिक और भावनात्मक रूप से शक्ति देती है और सबल बनाती है|क्योंकि यह एक चुनाव है| जो आप स्वयं के लिए जिम्मेदारी लेकर चुनते हैं वो आपके लिए शुभ होता है|
आज कोरोना संकट ऐसी ही परिस्थिति है जो ऐसी घटना से जनित हुआ जिस पर हमारा नियंत्रण नगण्य था और है| हम उस घटना को बदल नहीं सकते| कोरोना संकट एक सच्चाई है, चाहे वो कितना भी अकल्पनीय और अप्रत्याशित हो| हम केवल इस घटना के प्रति अपनी भावना का चुनाव जिम्मेदारी पूर्वक कर सकते हैं ताकि इन विकट परिस्थितियों में हमारी भावना हमारी प्रतिक्रियाओं को चुनने में हमारा मार्गदर्शन करे|और हमारे प्रयासों को हमारे लिए शुभ बनाये| जय हिन्द!

Anand Kumar

(यह लेख आनंद कुमार ने लिखा है| आनंद ‘टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान, मुंबई’ से सोशल वर्क में स्नाकोत्तर हैं| इनका विद्यालयी शिक्षा एवं शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में कई वर्षों का अनुभव रहा है| इन्होने अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन और कोरस्टोन इंडिया फाउंडेशन जैसे संस्थाओं के साथ कार्य करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान दिया है| वर्तमान में विश्व बैंक संपोषित शिक्षक शिक्षा सम्बन्धी एक परियोजना में शिक्षा विभाग, बिहार सरकार के साथ कार्यरत हैं|)

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