दुनिया भर में 6 करोड़ से ज्यादा लोग पहुँच सकते हैं भयंकर गरीबी में!

इतिहास हमें सिखाता है कि महामारियां यथास्थिति को तोड़ने के लिए जबरदस्त अवसर प्रदान कर सकती हैं। कोरोना वायरस ने यह चीख-चीख कर बता दिया है कि हमारा जीने का तरीका, न सिर्फ हमारे लिए बल्कि इस ग्रह के लिए कितना भंगुर और विनाशकारी है। हमें न सिर्फ अपना जीने का तरीका बदलना होगा बल्कि उन मूल्यों को भी बदलना होगा, जो आज इस हालात के लिए जिम्मेदार है। हमें कोशिश करनी होगी कि विकास का अर्थ सिर्फ पैसा ही न हो, उसमें स्वास्थ्य, पर्यावरण और अन्य जीवों की उन्नति भी शामिल हो। हमें स्थायी भविष्य की ओर बढ़ना होगा। चंद लोगों की तरक्की के लिए समूची मानव सभ्यता को दांव पर नहीं लगाया जा सकता है।

दुनिया भर में कोविड महामारी के दूरगामी होंगे प्रभाव
कोविड-19 के रूप में दुनिया एक महामारी से जूझ रही है। महामारी ने सारी दुनिया की व्यवस्थाओं को उथल-पुथल कर दिया है। क्या विकसित- क्या विकासशील, हर देश के स्वास्थ्य संसाधन महामारी के सामने ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुए। लाखों लोग इलाज के अभाव और लाखों इलाज होने के बावजूद असमय काल को प्राप्त हुए। यह तो इस महामारी का तात्कालिक प्रभाव था,जो सभी ने स्वास्थ्य संसाधनों की अनुपलब्धता के रूप में झेला, लेकिन महामारी के दूरगामी प्रभाव अभी सामने नहीं आए है। हालांकि दुनिया की नामी-गिनामी संस्थाएं इस बारे में विश्लेषण कर रही हैं। आर्थिक असमानता एक ऐसा ही दूरगामी प्रभाव होगा, जो इस महामारी के बाद अपने निकृष्टतम रूप में उभरेगा।

“दुनिया की सभी बुराइयों के बारे में जो सच है वह सच प्लेग के बारे में भी है। यह मनुष्य को खुद के स्वार्थ से ऊपर उठने का अवसर देता है”। –अल्बर्ट कामू

मानव विकास पर बुरा प्रभाव, संकट में आएंगे लोग
संयुक्त राष्ट्र विकास परियोजना की हालिया मानव विकास रिपोर्ट, जो वैश्विक शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर को एक साथ मापती है, 1990 के बाद पहली बार इसमें गिरावट देखने को मिल रही है। आपको बता दें, मापने की इस विधा का जन्म 1990 में ही हुआ था। यानी अपने जन्म से पहली बार यह नकारात्मक हुई है। यह पर्याप्त संकेत है कि मानव जाति किस संकट में है। रिपोर्ट में आगे लिखा है, इस बीमारी के गुजरने के बाद भी, सम्पूर्ण मानव सभ्यता को वर्षों तक इसके दुष्प्रभावों के साथ रहना होगा तथा विभिन्न रूपों में कीमत चुकानी पड़ेगी।

अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देशों पर ज्यादा प्रभाव
यूएनडीपी की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक प्रति व्यक्ति आय में चार प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है। विश्व बैंक ने चेतावनी दी है कि इस साल महामारी की वजह से 4 से 6 करोड़ लोग अत्यधिक (भयंकर) गरीबी में चले जाएंगे। इसका सबसे बुरा प्रभाव सब-सहारन अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देशों पर पड़ेगा। ये क्षेत्र पहले से ही अनेक समस्याओं में उलझे हुए हैं, महामारी के बाद और विकट उलझने वाले हैं।

वैश्विक अर्थव्यवस्था को होगा बढ़ा घाटा
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का अनुमान है कि अगले कुछ महीनों में दुनिया के आधे कामकाजी लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है, और इस वायरस से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 10 ट्रिलियन यूएस डॉलर का नुकसान हो सकता है। उसके साथ बड़ी बात यह कि बचे हुए कामकाजी लोगों के अधिकार दुनियाभर में सीमित किए जाएंगे, जो उनके जीवन को और मुश्किल कर देंगे।

26 करोड़ से अधिक लोग हो सकते हैं भूखमरी का शिकार
महामारी ने हर समाज की कमजोरियों को उजागर किया है और पाया लगातार व्यापक होती असमानता लगभग हर देश में समान है। वैसे भी असमानता का आलम COVID-19 के फैलने से पहले भी कुछ कम नहीं था, बस महामारी ने उसकी धार तेज कर दी। विश्व खाद्य कार्यक्रम (वर्ल्ड फूड प्रोग्राम) का कहना है कि वायरस के वजह से दुनियाभर में 26.5 करोड़ लोगों के सामने पेट भरने का संकट होगा, यदि सरकारों ने सीधी मदद नहीं की तो हालात बदतर हो सकते हैं।

विकासशील देश होंगे ज्यादा प्रभावित
यूएनडीपी के आंकड़ों के मुताबिक, विकसित देशों में हर 10,000 लोगों पर 55 अस्पताल के बिस्तर, 30 से ज्यादा डॉक्टर और 81 नर्स हैं। वहीं,कम विकसित देश में इतने ही लोगों के लिए सिर्फ सात बिस्तर, 2.5 डॉक्टर और छह नर्स हैं। इन देशों में साबुन और साफ पानी जैसी बुनियादी चीजें भी बहुतों के लिए भोग-विलास की वस्तुओं के समान हैं। स्वास्थ्य से इतर आर्थिक और सामाजिक स्तर पर महामारी से प्रभावित विकासशील देशों पर इसके घाव लंबे समय तक रहने वाले हैं। ILO का कहना है कि अकेले भारत में, 40 करोड़ से अधिक लोग गरीबी में फिसलने के जोखिम पर हैं क्योंकि वे असंगठित क्षेत्र में काम करने के लिए मजबूर हैं।

डिजिटल डिवाइड हुआ और स्पष्ट
विश्वव्यापी लॉकडाउन ने डिजिटल डिवाइड को और भी भीवत्स कर दिया है। अरबों लोगों के पास विश्वसनीय ब्रॉडबैंड इंटरनेट नहीं है, जो न सिर्फ उनकी पढ़ाई-लिखाई और काम करने की बीच में दीवार बना हुआ है अपितु उनके अपने रिश्तेदारों और परिवारजनों के साथ मेलजोल पर रोक लगा दी है। दुनिया भर में 6.5 अरब लोगों, जो कि वैश्विक आबादी का 85.5% है, की अभी भी ब्रॉडबैंड इंटरनेट तक पहुंच नहीं है। इससे उनकी क्षमताएं तो सीमित हुई ही हैं साथ ही उनमें नैराश्य भी बढ़ा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *