इंपाॅसिबल सिर्फ और सिर्फ एक वर्ड है और इसका अस्तित्व तभी तक है जब तक आप इस पर यकीन करते हैं। दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हुए जिन्होंने इस पर कभी यकीन नहीं किया और उस चीज को संभव कर दिखाया जो दूसरों की डिक्शनरी में शायद इंपाॅसिबल था। अपनी लाइफ में आई परेशानियों और संघर्ष के बाद एक तिकड़ी उस सफल मुकाम तक पहुंची, जो औरों के लिए एक मिसाल है। तीन दोस्त सुशील अग्रवाल, शरत रेड्डी और संदीप मुक्का ने मिलकर एथिका इंश्योरेंस (Ethika Insurance) कंपनी ही खड़ी कर दी।
लाइफ में कई बार हम असफल हो जाते हैं और असफल होने के बाद कई लोग अपना रास्ता बदल लेते है, तो कुछ लोग चुनौतियों का सामना करते हुए उसी रास्ते पर चलते हैं। ऐसे भी सफल लोग कहते हैं सफलता या मंजिल सिर्फ उन्हीं को मिलती है, जो आखिर तक प्रयास करना नहीं छोड़ते। आज हम आपको वैसे ही सक्सेस शख्सियत के बारे में बताएंगे, जिन्होंने अपनी लाइफ में कई उतार-चढ़ाव देखे, कई परेशानियां झेलीं, उसके बावजूद हार नहीं मानी और साथ मिलकर एक इंश्योरेंस कंपनी खड़ी कर हर उस युवा के लिए मिसाल कायम की, जो सच में अपनी लाइफ में कुछ करना चाहते हैं। संजीत मिश्रा से बातचीत में सुशील अग्रवाल (Susheel Agarwal), शरत रेड्डी (Sharath Reddy) और संदीप मुक्का (Sandeep Mukka) ने अपनी लाइफ के कई अनसुने किस्से बताए, जो सबको पढ़ना चाहिए।
कभी काॅलेज फी भरने को पैसे नहीं थे, आज लोगों को खुशियां दे रहा हूं: सुशील अग्रवाल
हम उस फैमिली से आते हैं, जहां बच्चों को 12-14 साल का होते ही गार्जियन दुकान पर बिठा देते हैं। बात 2008-09 की है। मेरे पापा टरपेंटाइन ऑयल मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी में काम करते थे और संडे को बुक स्टाॅल लगाते थे। एक संडे पापा के कहने पर मैं उनकी शाॅप पर गया, वहां पहुंचा तो मैं शाॅक्ड रह गया कि पापा फुटपाथ पर दुकान लगाए थे। हर संडे को वहां जाने लगा। यकीन नहीं करेंगे स्कूल टाइम में पढने में जितनी कम रूचि थी, बुक स्टाॅल पर बैठकर उतना ही इंटरेस्ट जग गया। रीडिंग हैबिट इतनी बढ़ गई कि घंटों-घंटे अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ने लगा।
स्कूल की पढ़ाई जैसे-तैसे करने के बाद इंजीनियरिंग में चले तो गए थे, पर फीस आदि के लिए हमारे पास उतने पैसे नहीं थे। एक बार का वाकया अचानक याद आ गया। मैं गवर्नमेंट काॅलेज से इंजीनियरिंग कर रहा था। एक बार काॅलेज की फीस भरने की लास्ट डेट नेक्स्ट डे थी और मेरे पास पैसे ही नहीं थे। मुझे उदास देखकर मेरे प्रिंसिपल ने मुझसे पूछा कि क्या हुआ, मैंने बता दिया कि मेरे पास पैसे नहीं हैं फीस भरने के लिए। अगले दिन जब मैं काॅलेज आया तो ऑफिस में पता चला कि मेरी फीस भर दी गयी है। प्रिंसिपल का यह अहसान मैं जिंदगी भर नहीं चुका पाउंगा, बस इतना कह सकता हूं कि आज जो कुछ भी हूं, उसमें उनका बहुत बड़ा योगदान है।
आप अगर पूछेंगे कि मेरा बेस्ट फ्रेंड कौन है, तो बेशक किताबें ही मेरी पहली और आखिरी दोस्त है। मैं उन लोगों जैसा नहीं हूं जो घंटों दोस्तों के साथ गप्पे मारते रहते हैं और इधर-उधर आउटिंग करते रहते हैं। मेरे दोस्त कभी कभी चिढ़ाते भी हैं कि तुम्हारा काॅल तभी आता है जब तुम्हें कोई काम होता है या कुछ पूछना होता है।
कुछ साल तक जाॅब करने के बाद मैंने वह नौकरी छोड़ दी और फिर हम तीनों एक साथ हो गए। हमारी मेहनत, एक दूसरे के प्रति विश्वास और समर्पण के बाद आज एथिका हमारे सामने है। हम तीनों एक दूसरे के पूरक हैं। एक की कमजोरी पर दूसरा हमेशा उसे बूस्ट करता है और यही हम तीनों की असली ताकत है। हमलोगों में एक और चीज काॅमन है कि हमलोग अपने काम को भी सेकेंड प्रायोरिटी पर नहीं रखते। हंसते हुए सुशील कहते हैं कि मेरी वाइफ श्रद्धा हमेशा कहती है कि तुम्हारे लिए संदीप और शरत ही मुझसे ज्यादा करीब हैं। श्रद्धा कहती है वे दोनों आपकी पहली वाइफ हैं, मैं दूसरी। पर, कहीं न कहीं उसे मुझ पर गर्व भी है और उसके इसी विश्वास और सपोर्ट के कारण मैं यहां तक पहुंचा हूं।
एथिका इंश्योरेंस (Ethika Insurance) के वर्क कल्चर के बारे में सुशील अग्रवाल कहते हैं कि हमारे यहां कोई वर्क पाॅलिसी नहीं है। यहां न लीव पाॅलिसी है, यहां न कोई अटेंडेंस पाॅलिसी है, न कोई रिपोर्टिंग सिस्टम है, न ही माॅनिटरिंग सिस्टम है। यहां न कोई केआरए का सिस्टम है, न ही यहां कोई टारगेट या कोई प्राॅपर रूल रेगुलेशन है। पहली बार जो हमारे यहां आते हैं उन्हें तो लगता है यह क्या कंपनी है, जहां बाकी कंपनियों की तरह कोई बंदिशें नहीं है। पर, यहां आकर लोगों को खुद ही लग जाता है काम करने का इससे अच्छा इंवायरन्मेंट कहीं नहीं हो सकता।
मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी, क्योंकि हमलोगों को कुछ बड़ा करना था: शरत रेड्डी
जब मैं आठवीं में पढ रहा था तभी मेरी मां कैंसर से चल बसी। किसी तरह पढाई की। आईटी रिसेशन के बाद भैया की जाॅब जाने के बाद फैमिली की स्थिति और खराब हो गई, जिसके बाद कई महीनों तक हमलोगों ने बन खाकर अपनी लाइफ गुजारी। किसी तरह छोटी मोटी जाॅब की, इस दौरान इंश्योरेंस के फील्ड में भी काम किया और फिर हम तीनों साथ हुए और आज यहां तक पहुंचे हैं।
शरत रेड्डी कहते हैं कि बात 2014 की है। उस समय लाइसेंस लेना हमलोगों की सबसे बड़ी प्रायोरिटी थी। तब लाइसेंस के लिए 50 लाख लगते थे, जो अभी 70 लाख हैं। हमलोग इतने पैसे कहां से लाएंगे, कैसे लाइसेंस मिलेगा यही सब सोच रहे थे, तभी मई में हमें फर्स्ट क्लाइंट मिला। सुशील उस समय किसी और प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे और मैं डेवलपिंग का काम देख रहा था। उस समय सुशील ने मेरी हेल्प की, मतलब मेरी सैलरी उन्हीं से मिली। उसका घर हमलोगों का ऑफिस बन गया।
किस्मत कहिए या हमलोगों का जुनून, पहले महीने ही हमलोगों को क्लाइंट मिल गया। 40-50 हजार रूपए आए जिससे हमलोगों ने अपना लैपटाॅप खरीदा। सुशील उस समय फटे जूते पहन रहे थे, उनका कहना था कि जब पहला क्लाइंट आएगा, तभी नए जूते लेंगे। जब भी बाहर निकलते थे और जिस किसी के भी बैगपैक पर किसी कंपनी का नाम दिखता था, हम नोट कर लेते थे और फिर वहां काॅल करते थे। इस दौरान छह-सात महीने में हमारे पास 11 क्लाइंट आ चुके थे, इसके बाद हमदोनों ने डिसाइड किया कि अब संदीप को भी साथ ले लेंगे। सुशील के बेटे के रूम में हमलोगों ने अपने ऑफिस का सेटअप बनाया। सुशील की वाइफ हमलोगों के लिए खाना बनाती और हमलोग दिनरात एक कर क्लाइंट ढूंढते रहते थे।
हमलोगों को ज्यादा पैसे की जरूरत थी तो सुशील ने अपने रिलेटिव्स और जानने वालों से रूपए उधार लिए और मैंने अपनी आल्टो कार बेच दी। संदीप ने अपनी एक प्राॅपर्टी भी बेच दी, जिससे हमलोगों के पास 50 लाख जमा हो गए थे। अमूमन लाइसेंस मिलने में छह-सात महीने लग जाते हैं, पर हमें जल्दी मिल गया। और इस तरह से हम तीनों का सपना पूरा हुआ और एथिका इंश्योरेंस ब्रोकिंग प्रा लि अपने रूप में आ गई।
शरत कहते हैं कि आपको जानकर अच्छा लगेगा कि हमारी कंपनी को गूगल पर 4.9 की रेटिंग है। हमलोगों की पहली प्रायोरिटी है कि हम अपने कस्टमर्स को बेहतर से बेहतर सर्विस प्रोवाइड कराएं। अभी हमारे पास लगभग हजार के आसपास गूगल रिव्यू हैं और हर रिव्यू में आपको एक कहानी मिलेगी। शरद कहते हैं कि मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि हम जो सर्विस और फैसलिटीज अपने कस्टमर्स को दे रहे हैं, वो अच्छी अच्छी कंपनीज नहीं देती हैं।
पापा के जाने के बाद जब फैमिली की रिस्पांसिबिलिटी आई, तब जिंदगी के मायने समझा: संदीप मुक्का
जब मैं 17 साल का था तब मेरे फादर की डेथ हो गई, और उसके बाद फैमिली की रिस्पांसिबिलिटी मुझ पर आ गई। पहले पापा का हाॅलसेल मार्केटिंग का काम था, जो उनके बाद कुछ दिन मैंने किया पर मुझसे अच्छे से हो नहीं रहा था। मेरी मां ने भी कहा कि तुम बिजनेस मत करो कुछ पढ लो ताकि आगे कुछ बेहतर होगा। पापा ने कुछ एलआईसी पाॅलिसी ले रखी थी, उसके जाने के बाद हमलोगों को उससे हेल्प तो मिली ही, मेरा भी झुकाव इंश्योरेंस की तरफ होने लगा। मुझे लगा कि इंश्योरेंस वाकई बहुत अच्छी चीज है अगर उनका इंश्योरेंस नहीं हुआ होता तो हमलोग सड़क पर आ गए होेते।
पुराने दिनों को याद करते हुए संदीप कहते हैं मैंने जो फील किया है उसके बाद कह सकता हूं कि अगर मेरे पास इंश्योरेंस नहीं होता तो शायद मैं आज यहां नहीं होता। इंश्योरेंस ने मेरी लाइफ को एक दिशा दी। अब एथिका भी यही कोशिश कर रहा है कि हमारे साथ जो भी जुड़ रहे हैं, उन्हें उनकी जरूरत के समय पूरा सपोर्ट किया जाएगा। एथिका का ऐम ही है सबके चेहरे पर स्माइल लाना। मेरा मानना है कि क्लेम सैटलमेंट को कितने अच्छे से कंप्लीट कर सकते हैं। एथिका की हमेशा से कोशिश होती है कि कस्टमर्स का क्लेम ज्यादा से ज्यादा सैटल हो। यही कारण है कि एथिका का क्लेम सैटलमेंट रेशियो कई कंपनियों से बेहतर है, जो लोगों के विश्वास का ही नतीजा है।
मेरा सबसे अधिक यही ध्यान रहता है कि कैसे कंपनी का काम बेहतर हो, किसी को भी कोई परेशानी होती है, मैं खुद को वहां हाजिर पाता हूं। क्लाइंट सैटिस्फैक्शन ही मेरे लिए सबसे बड़ा कर्म है। मैं किराना स्टोर में काम कर चुका हूं इसलिए मुझे पता है कि जब कस्टमर आपसे खुश रहेंगे तभी आपके पास आएंगे, वरना उनके पास तो ढेरों कंपनियों के ऑप्शन हैं।
संदीप कहते हैं कि कस्टमर्स को हम अपनी कंपनी का टोल फ्री नंबर नहीं देते हैं। कस्टमर्स को कंपनी के कंसर्न इंप्लाईज के नंबर दिए जाते हैं, ताकि अगर किसी को कोई परेशानी हो तो काॅल में ही सारा टाइम न खत्म हो जाए, डायरेक्ट कंपनी के बंदे से बात करे ताकि कम समय में अच्छा और बेहतर साॅल्यूशन मिले। टोल फ्री नंबर पर हर टाइम अलग-अलग लोग फोन पिक करते हैं और ऐसे में जो परेशान लोग होते हैं, उनकी परेशानी दूर होने के बजाय वह और भी परेशान होता है, जो कहीं से भी एक इंश्योरेंस कंपनी के लिए सही नहीं है।
एथिका के सीईओ सुशील अग्रवाल हैदराबाद के जहीराबाद में एक प्रोजेक्ट तैयार करवा रहे हैं। पांच एकड़ के इस प्रोजेक्ट में ऑफिस, स्टूडियो, ओपन किचेन, सेलिब्रेशन स्पेस और काॅटेज हैं। यहां सोलर और विंड के जरिये पाॅवर सप्लाई किए जाएंगे। रेन वाटर को स्टोर किया जाएगा ताकि उसका यूज किया जा सके। कुछ जगह पर फल व सब्जियां भी उगाई जाएंगी, जो पूरी तरह से हर्बल होंगी। इस प्रोजेक्ट को बनाने का सबसे बड़ा उद्देश्य है कि लोग काम करने आएं और रिलैक्स होकर लाइफ को इंज्वाॅय करें। सबसे बड़ी बात यहां किसी भी सुविधा के लिए सरकार पर डिपेंडेंट नहीं रहना इस प्रोजेक्ट के सक्सेस होते ही इसके बगल में एक और प्रोजेक्ट की तैयारी कर रहे हैं, जो इससे भी बड़ा होगा।
क्या है एथिका इंश्योरेंस ब्रोकिंग
एथिका इंश्योरेंस (Ethika Insurance Broking) अभी जेनरल और लाइफ इंश्योरेंस के क्षेत्र में काम कर रही है। इंप्लाईज, हेल्थ इंश्योरेंस, लाइफ इंश्योरेंस। कंपनीज के लिए साइबर रिस्क, डेटा सिक्योरिटी आदि सभी तरह के इंश्योरेंस ऑफर करती है। एथिका के तीन जगह ऑफिसेज हैदराबाद, बेंगुलरू और हैदराबाद में हैं, पर देशभर में काम करती है। एथिका के सीईओ सुशील अग्रवाल कहते हैं कि हमारी सर्विस बाकी कंपनीज से बहुत अच्छी हैं, तभी तो हमारे क्लाइंट ही दूसरे क्लाइंट को रेफर करती हैं। कंपनी के फाउंडर डायरेक्टर शरत रेड्डी कहते हैं कि एथिका का अभी सालाना 70 करोड़ का टर्नओवर है, जो इस साल सौ करोड़ पार हो जाएगा। एथिका का क्लेम सैटलमेंट रेशियो कई कंपनियों से बेहतर है, जो लोगों के विश्वास का ही नतीजा है।