फिल्म एवं टीवी अभिनेता तनवीर ज़ैदी से भेंट हुई, मैंने पूछा कि ‘जीवित रहने की लालसा और मृत्यु का खौफ दोनो ही बढ़ गया होगा, क्योंकि अस्वस्थ व्यक्ति में ऐसा होना स्वाभाविक है, फिर बचपन और युवा अवस्था में स्वस्थ जीवन जीने और वर्तमान में ज़मीन-आसमान का अंतर होगा ?” तनवीर ज़ैदी को मुझसे ऐसे गंभीर प्रश्न की आशा नहीं थी संभवत:, इसलिए पल भर के लिए वह स्तब्ध रह गए, फिर अपने को संभालते हुए उन्होंने बोलना आरंभ किया-
“शरद जी, एक गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति में, लंबा जीवन जीने की इच्छा और मृत्यु का डर एक सामान्य प्रतिक्रिया
है.”
तनवीर ज़ैदी ने वार्ता जारी रखते हुए कहा, ” सच कहूं, बचपन से एक ही धुन रही है, यही सोचता रहा हूं कि यशस्वी बनना है, धन नहीं बल्कि नाम कमाना है, फैंटम, स्पाइडरमैन जैसा बनना है, उन दिनों ब्रूसली, मोहम्मद अली के जैसा लोकप्रिय और बलवान बनने की भी इच्छा हिलोरें मार रही थी। जब मैं थोड़ा और बड़ा हुआ तब गावस्कर,कपिल देव जैसा बनने की इच्छा जागृत हुई, यह भी सोचा कि मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, नरेश मेहता, अमरकांत, उपेंद्र नाथ अश्क जैसे प्रसिद्ध साहित्यकारों जैसा-वैसा बन जाऊं । बाल उपन्यासकार एस सी बेदी और सुप्रसिद्ध कहानीकार वेद प्रकाश शर्मा जैसा बनने का भी मन हुआ, अभिनय और मॉडलिंग के साथ-साथ, मेरी दर्जनों कहानियां, कविताएं, आधा दर्जन बाल-उपन्यास प्रकाशित हुए थे।”
“उम्र और बढ़ी, तब अमिताभ बच्चन, नसीरुद्दीन शाह, ओमपुरी, फारूक शेख़, फ़िरोज़ ख़ान, विनोद खन्ना जैसा बनने के सपने देखने लगा । बगीचा, मुर्गा झटके का, आई लव यू आदि वीडियो, गंगा की कसम आदि टीवी और क्षेत्रीय फिल्मों में अभिनय किया। बस, एक ही दीवानगी थी, कि तनवीर ज़ैदी को बहुत लोकप्रिय बनाना है,सपनों को साकार करने के लिए लगातार मेहनत भी करता गया ।हां, कभी यह नहीं सोचा कि टाटा, बिरला या अंबानी बनना है ।” तनवीर ज़ैदी ने बताया।
फिर मैने पूछा, ” परिवार में माता-पिता क्या चाहते थे ?”
तनवीर ज़ैदी बोले, “माता-पिता, की इच्छा थी कि मैं डॉक्टर, इंजीनियर या कोई बड़ा अधिकारी बनूं, उनकी नसीहत पर अमल करते हुए पढ़ाई जारी रखा, डॉक्टर, इंजीनियर, आई ए एस, आई पी एस, आर्मी में कर्नल आदि उच्च अधिकारी बनने की इच्छा ने भी जन्म लिया , इसके लिए भी मैंने सेंट जोसेफ, आई ई आर टी, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की, प्रयास भी किया ।”
मैंने पूछा, बहुत मेहनत की आपने, फिर क्या हुआ ?
तनवीर ज़ैदी ने जवाब दिया, ” बहुत देर से समझ आया कि मैं तो Jack of all trades and master of none (अर्ताथ एक व्यक्ति जो कई काम कर सकता है किन्तु उनमें से किसी का भी विशेषज्ञ नहीं है)
बनकर रह गया हूं । पांच वर्ष की उम्र में बब्बन खां के गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज, विश्व-प्रसिद्ध नाटक ‘अदरक के पंजे’ से रंगमंच पर अभिनय की पारी आरंभ हुई थी, और चार-पांच वर्ष बाद, अभिनय जारी रखते हुए मैंने अमृत प्रभात/ नॉर्दर्न इंडिया पत्रिका से लिखने-पढ़ने का सिलसिला आरंभ किया, जो कुछ ही समय में व्यवसायिक लेखन में परिवर्तित हो गया, फिर कलम और कागज से संबंधित हर-एक कार्य करने में मैं निपुण हो गया था, अपरिपक्व लेखन के बाद, परिपक्व लेखन का सिलसिला अच्छा चल पड़ा था और उन दिनों मैंने अंग्रेजी और हिंदी (भाषाओं) में देश-विदेश के पत्र-पत्रिकाओं के लिए फ्रीलैंसिंग की, फिर बहुत कम आयु में सहायक संपादक, और फिर संपादक/मुख्य संपादक/प्रकाशक तक का सफर तय किया, किंतु स्पोर्ट्स (खेल-कूद), रंगमंच, रेडियो, टीवी/क्षेत्रीय फिल्मों में अभिनय और लेखन कभी नहीं छोड़ा, जो प्रेप क्लास (नर्सरी) से आरंभ हुआ था और इस क्षण तक जारी है।”
“जीवन और मृत्यु के संदर्भ में क्या बताना शेष है ?” मैंने फिर पूछा,
“हां, उस विषय पर भी आता हूं, उस विषय पर चर्चा से पहले, मुझे संछेप में अपनी कहानी बताना आवश्यक लग रहा है ।” तनवीर ज़ैदी ने लंबी सांस लेकर बोला था।
तनवीर ज़ैदी को अपनी जीवनी बताने में बहुत आनंद आ रहा था। कॉफी की चुस्कियों के साथ वह लगातार बोलते जा रहे थे, “बाल अभिनेता की पारी के बाद मैंने चार, पांच नायकों वाली हिंदी, बॉलीवुड फ़िल्म ‘बेलगाम’ में चार बेलगाम लड़कों में से एक बेलगाम युवक का पात्र निभाया, फिर हिंदी-अवधि फ़िल्म – काहे गए परदेस पिया, सजनी, नदिया किनारे, उमस आदि दर्जन से अधिक फिल्मों और जेल में है जिंदगी, मेम साहब, जैसे दो दर्जन टीवी शोज़ में मुख्य किरदार निभाए मॉडलिंग के साथ शर्मीली नजर और अमानेह जैसे म्यूजिक विडियोज किए ।”
अभिनेता तनवीर ज़ैदी धीरे-धीरे असली विषय की ओर बढ़ते हुए बोले, “2013 में फिल्म गार्डियन के लिए, मीन से धरती से 40 फुट ऊपर हवा में, खलनायक एहसान खान के साथ, एक खतरनाक एरियल स्टंट फाइट शूट करते समय घायल हुआ, स्टंट मास्टर के सहायक, जिसने मेरी केबिल हार्नेस गलत और असुंतलित बांधी थी, उसकी गलती के परिणास्वरूप-मैं एक गंभीर दुर्घटना का शिकार हो गया, शारीरिक चोट से मुझे असहनीय दर्द हुआ, मेरा आधा शरीर नीला पड़ गया था, निर्माता डॉक्टर विनोद सिंह को मैंने अपना नीला शरीर दिखाया, उन्होंने कहा “घबराने की कोई बात नहीं” अब जब निर्माता-डॉक्टर ने ऐसा कह दिया तब मैं मुतमयीन हो गया और एक अन्य फ़िल्म की शूटिंग में व्यस्त हो गया किंतु चोट इतनी अधिक गंभीर थी-यह छह माह बाद ज्ञात हुआ । असुंतलित हार्नेस के खतरनाक खिंचाव से मेरे ब्रेन में क्लॉट हो गया था, आधा शरीर गहरा नीला पड़ जाना क्लॉट की निशानी था, हिंदी फ़िल्म गार्डियन पूरी होने के बाद, मैंने दो फिल्में- इश्क समंदर, ‘दा डेड एंड’ व एक रियलिटी टीवी सिरीज़ मेले का बिग स्टार-का नया सीजन 7 किया, 2014 में एक दिन अचानक, असहनीय सिर दर्द से पीड़ित होने पर हर्ष हॉस्पिटल, इलाहाबाद और फिर लीलावती हॉस्पिटल, मुंबई में भर्ती हुआ, इलाज,दवाएं चलती रहीं, स्वस्थ होने पर, डॉक्टर के निर्देशानुसार- मैंने एक्टी अकैडमी/स्कूल और एक्टिंग के काम में कमी कर दी, साथ ही देश-विदेश के डॉक्टर्स की देखभाल में इलाज चलता रहा, दो फिल्मों चेज़, थैंक यू गॉड की, और एक टीवी शो की शूटिंग भी की ।” बोलते हुए तनवीर ज़ैदी अब गंभीर हो चुके थे, वह आगे बोले,
” फिर सितंबर २०१६ में मेरी फिल्म इश्क समंदर रिलीज़ हुई, उसके प्री-रिलीज़ प्रमोशन हेतु मुझे दर्जन भर शहरों में इवेंट्स का हिस्सा बनना पड़ा, बहुत मेहनत के कारण मानसिक तनाव हुआ, कुछ दवाएं भी मिस हुईं, इश्क समंदर के प्रीमियर के दस दिन बाद, एक रात मुझे अचानक ब्रेन स्ट्रोक-सेलेब्रल हैमरेज हुआ, 21 दिन ICU और फिर प्राइवेट रूम में रहने के बाद, सुधार होने पर घर वापस आया, मेरा आधा शरीर पैरालाइज्ड हो चुका था, इसी कारण मैं लगभग बेड पर ही पड़ गया था, बिस्तर पर पड़े होने पर, पहली बार ठीक से कुछ सोच-विचार के लिए समय मिला, तब परिपक्वता के साथ मैंने स्वयं की एक मनोचिकित्सक की तरह काउंसलिंग की, जीवन और मृत्यु के संबंध में पहली बार गंभीरता से सोचा, तब मौत का डर और ज्यादा महसूस हुआ, जीने की इच्छा तीव्रता से जागी, किंतु वर्ष दो वर्ष बीतने पर जब पीड़ा असहनीय होने लगी, तब महसूस हुआ कि मृत्यु एक बेहतर विकल्प है और इच्छा हुई कि बस अब और नहीं, जीवन को अलविदा कहना सबसे आसान और अच्छा उपाय लगने लगा, बिस्तर पर पड़े-पड़े, मैं अपने अतीत की अच्छी-बुरी यादों में खोने लगा, अपनी उपलब्धियों पर खुश होता और की गई गलतियों को सोच guilty feel करता था ( अपराध बोध महसूस करता था । जो हासिल किया उसके लिए फक्र और जो खो दिया, गुनाह किया उसके लिए शर्मिंदा होने लगा।
फिर जिंदगी और मौत के असली मायनों से रु ब रू हुआ, एहसास हुआ कि एक अच्छा पुत्र, अच्छा पति, अच्छा पिता बनना अधिक आवश्यक है, अगर सही तरह से रिश्ते निभ जाएं तो फिर मौत का डर नहीं रहता, इसीलिए अब मेरे सभी खौफ नदारद हो गए ।
To err is human
टू अर इज़ ह्यूमन अर्थात-गलती करना मानव का स्वभाव है, ज़ाहिर है, अतीत में गलतियां तो खूब की थीं। बेड पर पड़े हुए अपने अतीत को, आज भी एक संपादक की भांति संपादित करने का प्रयास करता हूं । दवाओं की मदहोशी में अतीत को संपादित करके खुश भी हो जाता हूं, किंतु होश में आने पर अक्सर आंखें आसुओं से गीली भी हो जाती हैं, फिर अपनी हालत पर हंस भी लेता हूं क्योंकि, अब त्रुटियों से लबरेज़ रचना प्रकाशित हो जाने के बाद कैसे एडिट की जाए ? यह तभी संभव है जबकि दूसरी बार रचना लिखने और उसे प्रकाशित करने का एक और अवसर मिले ।
नास्तिक नहीं हूं किंतु ब्लाइंड बिलीवर भी नहीं हूं । मुसलमान घर में जन्म हुआ किंतु मुसलमान से पहले एक इंसान और केवल इंसान हूं, शायद अच्छा इंसान हूं ।” तनवीर ज़ैदी की आंखों में आसूं छलक आए थे।
तनवीर ज़ैदी ने आगे कहा, “समाज में आए परिवर्तन से दुखी भी हूं, राजनीतिज्ञों से पहले से ज्यादा नफ़रत करने लगा हूं। दवाओं, थेरेपी, नियमित वर्जिश से, पहले से बहुत बेहतर हो गया हूं, व्हील चेयर से मुक्ति मिल गई है (अजीब संयोग है कि मैंने एक फिल्म प्रेणा-हॉट एंड कूल में व्हीलचेयर पर बीमार व्यक्ति का किरदार निभाया है । अब शीघ्र एक्टिंग, अपने संस्थान एक्टी… और शेष जिम्मेदारियां कहीं बेहतर ढंग से निभाने की इच्छा प्रबल हुई है , मौत की सच्चाई को परे रखते हुए, ज़िंदा रहने की ख्वाहिश एक बार फिर-से जागी है।”
प्रस्तुति : शरद राय