प्यार को नहीं भूल पाए हैं लवगुरु, पटना लाने के लिए गए समंदर पार

लवगुरु मटुकनाथ (Loveguru Matuknath) अपने प्यार जूली (Julie) को लाने सात समुंदर पार गए हैं। पिछले दिनों जूली के एक संदेश ने उन्हें त्रिनिदाद एंड टोबैगो के सेंटगस्टीन तक पहुंचा दिया। सात मार्च को वे वहां पहुंच गए हैं। जल्द ही वे जूली को लेकर पटना लौटेंगे, जब वह पूरी तरह स्वस्थ हो जाएंगी।

लवगुरु (Loveguru) ने कहा कि गृहस्थ से होकर ही संन्यास तक का रास्ता जाता है। इसके विपरीत जूली बिना गृहस्थ आश्रम जिए संन्यास की ओर चल पड़ीं। उनके स्वास्थ्य खराब होने की यह सबसे बड़ी वजह रहीं। जूली फिर से गृहस्थ आश्रम में जीवन जीना चाहती हैं और इस वजह से उन्होंने पटना वापस लाने का संदेश भेजा था। हिंदुस्तान अखबार से बातचीत में प्रो. मटुक नाथ (Prof Matuknath) ने बताया कि दरअसल जूली का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य खराब चल रहा था। मीडिया में जूली को उनके हाल पर छोड़ने की खबरों का खंडन करते हुए प्रो. मटुकनाथ ने कहा कि उनके प्रति शत्रु भाव रखने वाले लोगों ने ऐसा प्रचारित करने की कोशिश की लेकिन जूली को वापस लाने पर उनका जवाब उन्हें मिल जाएगा। वे अपने शुभचिंतकों को बताना चाहते हैं कि जूली अब चल-फिर रही हैं। खाना-पीना सामान्य हो चुका है और जल्द ही पटना में रहकर स्वास्थ्य लाभ करेंगी।

Matuknath and Julie

प्रो. मटुकनाथ (Prof Matuknath) ने कहा कि जूली को उन्होंने छोड़ा नहीं था बल्कि वे उनकी निजी स्वतंत्रता के समर्थक थे। लवगुरु ने बताया कि जूली के भीतर वैराग्य का भाव 2014 से ही दिखने लगा था। वे भजनों पर नृत्य करती थीं और चिंतन-मनन में लीन रहती थीं। वर्ष 2016 तक वे आध्यात्मिक वातावरण में डूबने के लिए पटना से कभी-कभार वृंदावन, होशियारपुर व बाकी धर्मस्थलों पर जाया करती थीं। वैराग्य की ओर जूली का झुकाव उन्होंने वर्ष 2016 के आरंभ में देखा। उन्होंने जूली को सलाह दी कि वो चाहें तो निश्चिंत भाव से वैराग्य जी सकती हैं। बकौल प्रो. मटुकनाथ, जूली के मानसिक स्वास्थ्य पर वर्ष 2016 के बाद ही असर होना शुरू हुआ।
जूली पटना से मटुकनाथ (Prof Matuknath)का घर छोड़कर ईश्वर में ध्यान लगाने वृंदावन समेत दर्जनों जगहों पर भ्रमण करती रहीं। प्रो. मटुकनाथ ने बताया कि इस बीच वे फोन के जरिए संपर्क में भी रहीं लेकिन अचानक जूली का फोन आना बंद हो गया। बाद में उन्हें जानकारी मिली कि वे अस्वस्थ हालत में त्रिनिदाद एंड टोबैगो पहुंच गई हैं। वे किसी को जीवित बुद्ध मानने लगी थीं और उनका अनुसरण करते हुए यहां इस हालत तक पहुंच गईं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *