याद है न, प्रधानमंत्री मोदी जी ने 24 मार्च को 8 बजे रात देशवासियों से अपने दोनों हाथ जोड़कर अपील की थी कि कोरोना महामारी से बचने को देशभर में कोई भी 21 दिन तक अपने घर के दरवाजों से बाहर हरगिज न निकलें। दरवाज़ों पर लक्ष्मण रेखा खींचकर बाहर कदम न रखें। पूरे देश ने मोदी जी की बात मानी। कई जगह लोग भूखे प्यासे घरों में कैद हैं.
लेकिन उत्तराखंड में उन्ही की बीजेपी सरकार ने अगले दिन से ही पहले लोगों को पूरे 6 घंटे जमकर खरीददारी करने और सैरसपाटा करने की अनुमति दे डाली। आलम यह है कि पहले से ही आबादी के बोझ से चरमरा रहे देहरादून में जब लोग दो दिन पहले खरीददारी करने निकले तो अनाज, सब्जी मंडियों व सभी बाजारों में हजारों लोग प्रदूषण, गंदगी और चौतरफा उडती धूल के बीच एक दूसरे को धक्का देते खरीददारी करते हुजुम को पूरी दुनिया ने देखा। हैरत यह है कि मुख्यमंत्री ही इस राज्य में स्वास्थ्य मंत्री भी हैं।
सरकार के पास बहुत वक्त था। ऐसा प्रबंध करती कि लोगों की भीड़ को एक ही बाजार में एकत्र होने पर अंकुश लगाने के लिए देहरादून शहर को नगर निगम के समस्त वार्डों के हिसाब से विभिन्न जोनों में बांटती। आउटर जोन के लोगों के लिए सिटी से बाहर उसी हिसाब से प्रशासन की निगरानी में वितरण की रणनीति बनती. दैनिक जरूरतों का बेहद जरूरी सामान लोगों को घरों के पास ही मुहैया होता। लोगों को मंडियों में उमडने का मौका नहीं मिलता।
कोरोना जैसी घातक बीमारी पर उत्तराखंड सरकार की अपने नागरिकों के प्रति इस काहिली और मूर्खतापूर्ण कदम पर इसी राज्य के ही स्वास्थ विशेषज्ञ गहरे सवाल उठा रहे हैं। ऐसे में उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन चुका है जो पीएम मोदी के आदेश और प्रार्थना की खिल्ली उड़ा रहा है। भीड़ को घरों में रोकने के लिए प्रेरित करने के बजाय, लोगों को बाजार में 6-6 घंटे तक भारी भीड़ का सैलाब जुटाने के लिए एकत्र करने में जब सरकार खुद ही जुटी है तो फिर लोगों को जानलेवा महामारी से भगवान भी नहीं बचा सकेगा।
(यह लेख वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेड़ा के फेसबुक वाल से लिया गया है.)