अभिजात्य वर्ग हर जगह होते हैं। हर समाज व प्रोफेशन में। पाॅलिटिक्स, मेडिकल, मीडिया, बिजनेस, पुलिस, प्रशासन सब जगह भरे पड़े हैं ऐसे वर्गों के गैंग। यही गैंग बाॅलीवुड में भी हैं। ये वर्ग मानते हैं कि जहां वे हैं, वह सिर्फ उन्हीं लोगों का है, उन्हीं लोगों के लिए है। फिल्म व टीवी जगत में अब ज्यादा दिखने लगा है, क्योंकि अब हर गांव व कस्बे से टैलेंट आने लगे हैं। एक्टिंग खानदानी प्रोफेशन नहीं रह गया है, अगर होता तो बड़े स्टार या गाॅडफादर के दम पर हर कोई सुपरस्टार बन जाता ।
सुशांत, राजकुमार, आयुष्मान, नवाज, कार्तिक सरीखे कलाकार पर्दे पर बिना किसी सीढी के यूं नहीं चमचमचाते। पर, खटकता तो है ही बाॅस। वर्षों से जिसे सुपरस्टार कहलाने की आदत बन गई हो, उसे अपने सामने पैदा हुए कलाकारों से खुन्नस तो होगी ही। सुशांत सिंह राजपूत के मामले में भी शायद यही खुन्नस और जलन उनके डिप्रेशन और फिर मौत का कारण बना होगा। कुछ तो बात थी इस बंदे में कि आते ही टीवी से लेकर बाॅलीवुड तक पर हल्लाबोल कर दिया। अच्छी फिल्में मिली और हिट भी हुईं।
कम समय में मिली यही सफलता बाॅलीवुड के अभिजात्य वर्ग को नागवार गुजर रही होगी, जिसके बाद हाल के कुछ महीनों में सुशांत से एक के बाद एक सारी फिल्में वापस छीन ली गईं या छिनवा दी गईं। अब कोई भी रहे, कितना भी मजबूत क्यों न रहे, ऐसी सिचुएशन में डिप्रेश होगा ही। और ऐसी डिप्रेशन की दवा न साइकोलाॅजिस्ट के पास है और न फैमिली या दोस्तों के पास। जिसके पास थी वो तो एक बार झांकने तक नहीं गए इतने दिनों से। अब जब वो है नहीं, तो धीरे-धीरे दबी बातें सामने आ रही हैं। पर, यकीन मानिए, अब भी कुछ नहीं होगा। कुछ भी नहीं बदलेगा। दरअसल, अभिजात्य वर्ग का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, क्योंकि सबको रोटी-दाल की चिंता है।
यह लेख पत्रकार संजीत मिश्रा ने लिखा है। इसे हमने उनके फेसबुक वाल से लिया है।)
2020-06-15