सुशांत सिंह राजपूत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद यह लगभग साफ हो गया है कि उन्होंने सुसाइड ही किया था। अब वे डिप्रेशन में कैसे आए और यह रास्ता क्यों चुना, इसकी तह तक जाने की जरूरत है। क्योंकि एक सुशांत को तो हमने जाने-अनजाने खो दिया, पर ऐसा कोई और सुशांत अपनी जिंदगी अशांत करने की कोशिश न कर रहा हो। डिप्रेशन ऐसी बीमारी है जो किसी को भी हो सकती है। ये सही है कि आज पैसा सबकुछ है, पर यह भी सही है कि पैसा ही सबकुछ नहीं है।
आज अगर सुशांत के दिल की बात समझने वाला कोई होता, तो शायद यह हादसा न हुआ होता। क्योंकि कभी-कभी इंसान डाॅक्टर से भी कुछ बात छिपा जाता है। उसके जाने के बाद लोग यह भी कह रहे हैं कि अगर इतना डिप्रेशन में था तो वापस गांव आ जाता, इतने प्रवासी पैदल आए वह भी आ जाता। पर, ये लोग यह नहीं समझ रहे कि सुशांत जिस स्थिति में पहुंच चुका था, वहां ऐसा सोचना या करना उसके लिए पाॅसिबल नहीं था। मुंबई की खबरें बताती हैं कि वह बहुत कुछ झेल रहा था। बहुत कुछ चल रहा था उसके दिमाग में।
कोरोना वायरस और लाॅकडाउन बाद अभी ऐसी बीमारी और फैलेगी, क्योंकि पैसा बहुत कुछ है। जब जेब में पैसे नहीं रहेंगे, तो बुरे ख्यालात आएंगे ही आएंगे और यही बुरे ख्यालात उस बीमारी को हवा देते हैं, जो इंसान से कुछ भी करवा सकती है। आदमी उस मनस्थिति में चला जाता है जब उसका ज्ञान, उसकी सोच, उसका दिमाग सब काम करना बंद कर देता है। वही बस वही करता है जो वह करना चाहता है।
वरना, जो शख्स सुसाइड जैसे सब्जेक्ट पर बनी इतनी अच्छी फिल्म का किरदार रहा, उसे एक बार भी तो पर्दे पर जी हुई अपनी कहानी याद आती। इसलिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि इंसान उन स्थिति में आए ही नहीं, इसका ख्याल सबको रखना चाहिए। आपके हमारे बीच कई ऐसे लोग होंगे जो हंसते रहने के बावजूद दिल में हजार गम छुपाए रहते होंगे। हमें वैसे ही गम को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए। वैसे लोगों को यह महसूस कराना चाहिए कि हर प्राॅब्लम का साॅल्यूशन है। ऐसी कोई समस्या बनी ही नहीं, जिसकी कोई तोड़ न हो। ऐसे कई प्रोफेशन हैं जिसमें यह बीमारी कोरोना की तरह फैली हुई है। फिल्म व टीवी इंडस्ट्री इनमें सबसे ऊपर है। पर्दे पर एक बार चमक जाने वाले सितारों को हमेशा यह डर सताते रहता है कि कहीं उसका सितारा टूट न जाए और यही वजह डिप्रेशन की ओर ले जाती है।
पर, अब सुशांत को आप उसके कमजोर दिल के लिए न याद करें। याद उस जिंदादिल शख्स के रूप में करें कि कैसे छोटे से शहर से निकला एक नौजवान कम समय में छोटे पर्दे से लेकर बड़े पर्दे तक पर छा गया। उसकी लगभग जो भी फिल्में रहीं, वह कोई न कोई पाॅजिटिव संदेश दे गईं। याद रखें सपनों की डायरी बनाकर उसे पूरा करने की कोशिश हर कोई नहीं कर सकता। अपने घर से टेलीस्कोप के जरिये देखते हुए चांद-तारों के बीच घर बसाने की जिद हर कोई नहीं कर सकता। उसमें जरूर कुछ ऐसी बातें थीं जो बाकियों में कतई नहीं हो सकती। फिर भी, उसकी हिम्मत हार गई। पर, आगे ऐसा कोई सुशांत न आए, जो उसके जैसी हिम्मत हारे…
यह लेख पत्रकार संजीत मिश्रा ने लिखा है। इसे हमने उनके फेसबुक वाल से लिया है।)