खबर वाकई अच्छी है। अगर यह तकनीक काम करने लगे तो यक़ीनन लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। भारतीय वैज्ञानिकों ने उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के विकास और मजबूती का पता लगाने के लिए एक नई तकनीक खोज निकाली है। यह तकनीक उपग्रह से भी पहले उत्तरी हिन्द महासागर क्षेत्र के ऊपर बनने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का पता लगा लेगी। उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का पहले पता लग जाने पर केंद्र और राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों की सरकारें इन तूफानों के आने से पहले पूरी तरह से तैयार रहेंगीं, जिससे जान-माल की क्षति बहुत कम होगी।
पिछले महीने ‘यास’ और ‘ताउते’ ने मचाई थी तबाही
कम वायुमंडलीय दवाब के चारों-ओर गर्म हवा की तेज आंधी को चक्रवात कहते हैं। चक्रवात दो प्रकार के होते हैं- ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात एवं शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात बनते हैं। बंगाल की खाड़ी में उठने वालों की तुलना में अरब सागर के चक्रवाती तूफान अपेक्षाकृत कमजोर होते हैं। कुछ दिनों पहले बंगाल की खाड़ी में आए चक्रवात, ‘यास’ ने, अरब सागर में पिछले महीने आए ‘ताउते’ की तुलना में ज्यादा क्षति पहुंचाई थी।
वायुमंडल की ऊपरी सतह पर पनपते हैं ये चक्रवात
उष्णकटिबंधीय चक्रवात वायुमंडल की ऊपरी सतह पर पनपते हैं और मानसून के बाद के मामलों के विपरीत, पूर्व-मानसून मामलों में जल्दी पकड़ में आ जाते हैं। इस तकनीक से उष्णकटिबंधीय चक्रवात का वायुमंडल में ही पता लगाया जा सकता है। यह तकनीक समुद्री सतह के ऊपर की हलचल को पकड़ने में उपग्रह की तुलना में ज्यादा तेज है।
अब तक सिर्फ सुदूर संवेदन तकनीक पर थे निर्भर
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात आक्रामक तूफान होते हैं, जिनकी उत्पत्ति उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों में होती है और ये तटीय क्षेत्रों की तरफ गतिमान होते हैं। अब तक इन चक्रवातों का जल्दी पता लगाने के लिए हम सुदूर संवेदन तकनीक पर निर्भर थे। हालांकि, यह पता लगाना तभी संभव था, जब गर्म समुद्र की सतह पर एक कम दबाव प्रणाली वाला क्षेत्र विकसित हो गया हो। चक्रवात का पता लगाने और उसके प्रभाव के बीच एक बड़ा समय अंतराल तैयारी संबंधित गतिविधियों में मदद कर सकता है।
जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के तहत किया गया विकसित
आईआईटी खड़गपुर के जिया अल्बर्ट, बिष्णुप्रिया साहू और प्रसाद के. भास्करन सहित वैज्ञानिकों की एक टीम ने जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम (सीसीपी) के तहत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के सहयोग से एडी डिटेक्शन तकनीक का उपयोग करके एक नई विधि तैयार की है। यह विधि उत्तर हिंद महासागर क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय साइक्लोजेनेसिस के प्रारंभिक चरणों का पता लगाने के लिए तैयार की गई है। यह शोध हाल ही में ‘एटमॉस्फेरिक रिसर्च’ जर्नल में प्रकाशित हुआ था।
समुद्र की सतह पर होने वाली गतिविधियों से चक्रवात का पता
समुद्री सतह पर गर्म वातावरण बनने से चक्रवात के वजूद में आने से पहले, वातावरण में अस्थिरता आने लगती है। साथ ही हवा भंवरदार बनने लगती है। इसके कारण वातावरण में उथल-पुथल शुरू हो जाती है। ऐसे बवंडरों से जो स्थिति बनती है, वह आगे चलकर चक्रवात को जन्म देती है। इसके बाद समुद्र की सतह के ऊपर कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है। यह तकनीक इन्हीं गतिविधियों से तेज तूफान आने की संभावना का पता लगाती है।
तूफान के आने से 90 घंटे पहले देगी जानकारी
इस अध्ययन में बवंडर और भंवरदार हवा की गहन पड़ताल की गई, उनके व्यवहार को जांचा-परखा गया एवं आम दिनों के वातावरण के साथ इसके नतीजों की तुलना की गई। वैज्ञानिकों ने बताया कि इस तकनीक से तूफान के आने से 90 घंटे यानि लगभग चार दिन पहले इसका पता लगाया जा सकता है। यह इसके बनने के समय की भी जानकारी देता है। इनमें मानसून से पहले और बाद, दोनों समय आने वाले तूफान शामिल हैं।
पूर्व-मानसून मामलों को ट्रैक करना भी होगा आसान
उष्णकटिबंधीय चक्रवात वायुमंडल की ऊपरी सतह पर पनपते हैं और मानसून के बाद के मामलों के विपरीत, पूर्व-मानसून मामलों में जल्दी पकड़ में आ जाते हैं। इस तकनीक से उष्णकटिबंधीय चक्रवात का वायुमंडल में ही पता लगाया जा सकता है। यह तकनीक समुद्री सतह के ऊपर की हलचल को पकड़ने में उपग्रह की तुलना में ज्यादा तेज है।