प्रशांत जायसवाल उर्फ प्रभाकर ऐसा नाम है जिसने जर्मन फिल्मों में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। अब तक उन्होंने 90 से ज्यादा फिल्मों और टीवी सीरीज़ में काम किया है। बिहार के एक छोटे से शहर मधुबनी से जर्मनी आकर अपनी अलग पहचान बनाना इतना आसान नहीं था, इन दिनों वो त्वचा में सफेद दाग जिसे विटिलिगो कहते हैं से जूझ रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हें कम काम मिल पा रहा है। कहते हैं किसी का चेहरा उसके शरीर का सबसे ख़ास अंग होता है और चेहरे पर यदि दाग आ जाए तो इंसान में आत्मविश्वास की कमी आना स्वाभाविक है। हालांकि उनका उपचार जारी है और वो हिम्मत हारने वालों में से नहीं हैं। कॉस्मेटिक्स से तो किसी भी दाग को छुपाया जा सकता है। ऐसे में उनका ये सफ़र लगातार जारी है। वो बॉलीवुड में भी किस्मत आज़मा रहे हैं। प्रशांत इन दिनों बड़ी शिद्दत से अपनी जिंदगी फिर से जीने के लिए किसी भारतीय सुशील दुल्हन की तलाश कर रहे हैं। पत्रकार मधु चौरसिया ने प्रशांत से विस्तार से बातचीत की।
आप भारत में कहां से हैं और जर्मनी कैसे आना हुआ ?
मेरा जन्म 13 अक्टूबर 1974 को बिहार के मधुबनी में हुआ। जो कि मधुबनी पेटिंग और मखाना के लिए प्रसिद्ध है। मेरे भैया-भाभी और परिवार अब भी वहां रहते हैं। मेरे पिता स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं, बचपन से उन्होंने हमें विषम परिस्थितियों से जूझना सिखाया है। मैंने समाजशास्त्र में स्नातक किया है। आईटी में नामांकन लेना किसी भी हिन्दुस्तानी छात्र का सपना होता है, जो मेरा भी था, लेकिन मैंने पटना से यात्रा एवं पर्यटन प्रबंधन यानी ट्रेवल एंड टूरिज्म कोर्स किया और राजगीर, पटना, बनारस, बोधगया सहित बुद्धिस्ट ट्राएंग्ल और गोल्डन ट्राइंग्ल में अंग्रेजी और जर्मन गाइड एंड स्कॉट के तौर पर काम करने लगा। दिल्ली और पुणे के मैक्स मूलर भवन से मैंने जर्मन भाषा का कोर्स किया। दिल्ली में फेंच और जेपेनिज भाषा सीखने के लिए नामांकन लिया लेकिन एक दो सेमेस्टर के बाद मुझे इसमें दिलचस्पी नहीं लगी। ऐसे में मैंने जर्मन में ही आगे करियर बनाने की सोची। साल 2000 में जर्मन एक्सपो के लिए मेरा चयन हुआ और दिल्ली की कंपनी इंडियन हैंडीक्राफ्ट एंपोरियम के लिए एक इंटरप्रेटर के रूप में काम किया। हेनोवर में कुछ महीने रहने के बाद जर्मनी मुझे बेहद पसंद आया। भारत से लोग अमेरिका, इंग्लैंड ऑस्ट्रेलिया, कनाडा जाते रहे हैं, लेकिन मुझे जर्मन भाषा और यहां के लोगों से जुड़ाव महसूस हुआ। पढ़ाई के सिलसिले में साल 2002 में दोबारा यहां आना हुआ। जिसके बाद यहां की एक लड़की को मुझसे प्यार हो गया। उस जर्मन लड़की को भारतीय संस्कृति से बेहद लगाव था और भगवान कृष्ण में बेहद विश्वास रखती थीं, बिन्दी, गहने, चूड़ियां और सलवार कमीज़ पहनना उसे बेहद पसंद था। परिवार की सहमति से हमने शादी की, हालांकि ये शादी ज्यादा दिन नहीं टिक पाई और हमारा तलाक हो गया। पिछले ग्यारह साल से हम अलग रह रहे हैं। लेकिन हमारी एक बहुत प्यारी से बेटी है, जिसका नाम जुलीना जायसवाल है। अब वो तेरह साल की है, जो कि अपने पिता के समान ही एक्ट्रेस है। उसे कैमरा के सामने एक्टिंग करने में ज़रा भी झिझक नहीं होती बल्कि वो कहती है ‘एक्टिंग तो मेरे ख़ून में है’। मेरी बेटी मेरी सबसे बड़ी फ़ैन है और मैं ख़ुद भी उसका सबसे बड़ा फैन हूं। जब भी मैं किसी फिल्म या सीरीज़ में काम करता हूं, उसे वो जरूर देखती है और अपनी प्रतिक्रिया देती है।
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जर्मनी में फिल्मों में आपकी एंट्री कैसे हुई?
बचपन से मुझे बॉलीवुड फिल्में देखने का बड़ा शौक था, स्कूल के दिनों में मुझपर अमिताभ बच्चन जैसा बनने का भूत सवार था। मेरे मन के किसी कोने में था कि कभी न कभी जर्मनी जाना है और एक्टिंग के क्षेत्र में कुछ नाम कमाना है। मेरे पिताजी कहते थे ‘कुछ ऐसा करो की तुम्हारी अलग पहचान बन जाए। जर्मनी आने के बाद कई कास्टिंग डायरेक्टर से मिला, जिसके बाद मुझे कुछ जर्मन फिल्मों में छोटा-मोटा रोल मिलना शुरू हो गया। धीरे-धीरे लोगों को मेरा काम पसंद आने लगा और काम मिलता चला गया। मैंने अवार्ड विजेता टीवी शो ‘Stromberg’ जो कि इंग्लैंड और अमेरिका की फैमस सीरियल ‘द ऑफिस’ की कॉपी है जसमें मैंने कंप्यूटर प्रोफेशनल का रोल निभाया है। मैंने कई लघु फिल्मों और विज्ञापन में भी काम किया है। जर्मनी के ‘Reise bank ‘ का मैं लंबे समय तक एम्बेस्डर रहा हूं। ‘Astra bear’ के वाज्ञापन में hamburg में बड़े पोस्टर और बैनर में भी नजर आया। मैंने ‘लाइफ ऑफ पाई’ फिल्म में अपनी आवाज़ दी है। तीन बॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया है।
बॉलीवुड की कौन सी फिल्म आपको सबसे ज्यादा पसंद है ?
मेरे पसंदीदा एक्टर अमिताभ बच्चन हैं। इंग्लैंड के लीड्स शहर में मेरी उनसे मुलाकात भी हुई है। उनकी फिल्म अग्नीपथ मेरी फेवरेट फिल्म है। उसके हर एक डायलॉग मुझे बेज़ुबानी याद है। ‘कभी खुशी कभी गम’ भी मुझे पसंद है। अक्षय कुमार के अभिनय को साथ उनकी अनुशासित दिनचर्या, हेल्थ कॉन्सश होना और औरतों के प्रति उनका सम्मान से भरा नज़रिया भी मुझे भाता है। वहीं टीवी पर प्रसारित कपिल शर्मा शो का मैं बहुत बड़ा फ़ैन हूं, इस शो को देखकर मैंने हंसना सीखा । कोशिश है कि मैं कपिल शर्मा शो में जाऊं। कई वर्षों से मेरी जिंदगी बेहद गमगीन रही थी, मेरे 22 साल के भतीजे की सड़क हादसे में मौत के बाद में बेहद सदमें में चला गया था।
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क्या आप बॉलीवुड में किस्मत आज़माना चाहते हैं ?
मैं भारत प्रवास के दौरान बॉलीवुड के प्रोड्यूसर से भी मिल रहा हूं। बॉलीवुड में डांस ड्रामा, रोमांस सब कुछ होता है, ऐसे में मैं भी फिल्मों में डांस और रोमांस करना चाहता हूं। किस्मत ने साथ दिया तो जरूर मैं हिन्दी फिल्मों में भी फिर से नजर आऊंगा।
हिन्दी फिल्में क्या जर्मनी में भी देखी जाती हैं?
जी हैं! जर्मनी में बॉलीवुड की फिल्में देखी जाती हैं। खासकर युवा वर्ग शाह-रूख-खान और अमिताभ बच्चन की अदाकारी को पसंद करते हैं। आलिया भट्ट और रणबीर कपूर भी नई पीढ़ी के चहेते कलाकार हैं, जिनसे मुझे बर्लिन में मिलने का मौका मिला। जर्मन फिल्मों में डांस, एक्शन या रोमांस नहीं होता, ऐसे में भारतीय संस्कृति लोगों को लुभाती हैं। वहां जर्मन भाषा में उसे डब कर प्रसारित किया जाता है।
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भारत के क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों को लेकर आप क्या सोचते हैं, साउथ की फिल्में अब विदेशों में बसे भारतीय बेहद पसंद कर रहे हैं, ऐसे में बिहार की फिल्मों को लेकर आपकी क्या राय है?
वैसे तो मैं भारत से लंबे समय से बाहर हूं, ऐसे में क्षेत्रीय भाषा की फिल्में कम ही देख पाता हूं। बिहार की ज्यादा फिल्में नहीं देख पाता हूं, लेकिन रवि किशन, पंकज त्रिपाठी और मनोज बाजपेई के काम की सराहना करता हूं। मेरे विचार से यदि भोजपुरी फिल्मों में भी अश्लील गाने की बजाय साफ सुथरे गाने परोसे जाएं तो शायद वहां लोग इन्हें परिवार के साथ देखना पसंद करेंगे। साउथ की फिल्में अब हिन्दी में भी डब हो रही हैं और पूरा देश इन्हें पसंद भी कर रहा है। ऐसे में ख़ेद होता है कि अपने बिहार की फिल्में ब्लॉक बस्टर नहीं हो पाती। उन्हें भी यदि सही समर्थन या सहयोग मिले तो वो भी मुंबई के सिनेमाघरों में लगाए जा सकेंगे। बस बिहार की फिल्मों में छवि सुधारने की जरूरत है।
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जर्मनी में यदि कोई किस्मत आज़माना चाहे तो कितनी संभावनाएं हैं?
यदि आपकी हिन्दी और जर्मन भाषा पर पकड़ अच्छी है तो यहां भी संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं। हालांकि जर्मनी में ऐसी कम ही फिल्में बनती हैं जसमें हम भारतीय का कोई रोल हो। लेकिन यदि कोई नया चेहरा किस्मत आज़माना चाहे और उसमें इच्छा शक्ति हो और वो प्रतिभाशाली, कर्मठ हो तो अपनी जगह बना सकता है, जैसा कि आप देख सकते हैं जर्मनी में मैंने अपनी अलग जगह बनाई है।
भविष्य में आप खुद को कहां देखना चाहते हैं?
जैसा कि मैंने पहले भी आपको बताया की मेरे आदर्श अमिताभ बच्चन हैं। मैं उनकी तरह ही जर्मन फिल्म इंडस्ट्री और बॉलीवुड में अपने वतन का नाम रौशन करना चाहता हूं। लोग मेरे काम से मुझे जानते हैं, मैं ख़ुद को वापस एक्टिंग के क्षेत्र में देखना चाहता हूं। पिछले ग्यारह साल से मैं अकेला रह रहा हूं। ऐसे में एक बार फिर से एक भारतीय सभ्य और सुशील जीवनसाथी चाहता हूं। प्रशांत की जिंदगी को रौशन करने के लिए एक दुल्हनिया की तलाश जारी है।
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आपने अब तक किन-किन फिल्मों में काम किया है और आपकी कौन-कौन सी फिल्में कतार में हैं?
मैंने अब तक 90 से ज्यादा फिल्मों और टीवी सीरीज़ में काम किया। मेरी सबसे फेवरेट सीरीज Alarm für Cobra 11 को दर्शकों ने बेहद पसंद किया। मैं जर्मनी के साथ साथ ऑस्ट्रिया स्विट्जरलैंड, इंग्लैंड की फिल्मों में भी काम कर चुका हूं। इस फेहरिस्त में ये फिल्में और टीवी सीरीज़ शामिल हैं।
· 2005: Crime Scene (Tatort), (TV series)
· 2006: Aktenzeichen XY… ungelöst (TV series)
· 2008: Angie (TV series)
· 2009: Die Pfefferkörner (TV series)
· 2009: Cologne P.D. (TV series)
· 2009: Last Stop Toyland (Spielzeugland Endstation)
· 2009: Desert Flower
· 2010: Küss Dich Reich (TV movie)
· 2010: Mit Herz und Handschellen (TV series)
· 2010: Liebling, lass uns scheiden! (TV movie)
· 2010: Toxic Lullaby
· 2010: Fasten à la Carte (TV movie)
· 2011: Lisas Fluch (TV movie)
· 2011: Men in the City 2 [de]
· 2011: Nightmare Fever (Alptraumfieber)
· 2011: Aazaan
· 2012: Stromberg (TV series, Appearance in 29 episodes from 2005 to 2012)
· 2012: Crime Scene (Tatort), (TV series)
· 2012: Robin Hood: Ghosts of Sherwood
· 2012: Agent Ranjid rettet die Welt
जर्मनी में रहकर एक भारतीय के लिए जर्मन फिल्म इंडस्ट्री में इतनी शोहरत कमाना आसान नहीं था। लेकिन मेरी लगन और मेहनत ने मुझे वहां की इंडस्ट्री कामयाब एक्टर बनाया है। मैं सामाजिक कार्यों में भी बेहद सक्रिय रहता हूं। ब्यूटी कॉन्टेस्ट में जूरी के तौर पर मुझे आमंत्रित किया जाता है। कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ा हूं और जितना संभव होता है, मैं जरूरतमंदों की मदद करता हूं।
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