किडनी रोग से पीड़ित पुराने रोगी को कोरोना काल में ज्यादा केयर करना चाहिए

सर्वविदित है कि जीर्ण अवस्था वाले किडनी रोग से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या विश्व के सभी भागों में बहुतायत है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। वर्तमान समय में जिस प्रकार हमारे देश में कोरोनावायरस यानी कोविड 19 का संक्रमण फैला हुआ है, जल्द ही पुराने किडनी रोगी इसकी चपेट में आ सकते हैं। यह कहना है डॉ प्रसून घोष का जोकि गुड़गांव स्थित मेदांता मेडिसिटी अस्पताल के किडनी ऐंड यूरोलॉजी तथा यूरोलॉजी के रीनल ट्रांसप्लांटेशन डिवीजन में अध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं।
डॉ घोष बताते हैं कि अधिकांश सभी जीर्ण अवस्था वाले किडनी रोगी उच्चरक्तचाप चयापचयी हड्डी विकारों मेटाबॉलिक बोन डिसऑर्डर एवं एनीमिया को नियंत्रित करने की दवाओं का सेवन करते हैं। अगर ये रोगी कोरोना से संक्रमित हुएय तो ऐसे व्यक्तिए प्रत्यक्ष या परोक्ष संक्रमण क्रियावली से अपने गुर्दों की कार्य.प्रणाली में बाधा महसूस करेंगे।
डॉ घोष का मानना है कि ऐसे रोगी जो हीमोडायलेसिस पर हैं, उनकी स्थिति वर्तमान कोरोना समयकाल में अतिसंवेदनशील है। ऐसा इसलिए है कि रोगी के रोग की सहरुग्णताएं कोमरबिडिटिस रोगी का बार बार अस्पताल प्रभावन क्षेत्र में आना रोगी का प्रतिरोधकता दमन अवस्था में होना तथा प्रतिरोधकता दमन करनेवाली दवाओं का सेवन करना इन सभी से रोगी की स्थिति अतिसंवेदनशील हो जाती है।
साथ ही रोगियों के चिकित्सा से जुड़े कर्मचारियों के संपर्क में आने से दुतरफा कोरोना संक्रमण वाली स्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता डॉ घोष विश्लेषण करते हुए कहते हैं।
डॉ घोष परामर्श देते हुए कहते हैं कि पुराने गुर्दे रोगियों तथा सभी चिकित्सा केंद्रों को इस संदर्भ में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार इंडियन सोसायटी ऑफ़ नेफ़्रोलॉजी तथा नेशनल ऑर्गन ऐंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइज़ेशन द्वारा जारी एवं अनुमोदित किये गये प्रमाणिक प्रक्रिया संबंधित दिशा निर्देशों का अनुपालन करना अनिवार्य है।
डॉ घोष चिकित्सीय परामर्श के रूप में कहते हैं कि जीर्ण अवस्था वाले गुर्दे रोगियों को हीमोडायलेसिस नियमित रूप से कराना इस कोरोना संक्रमण समय में अत्यंत आवश्यक है। साथ ही रोगियों को खांसीए बुखार एवं फ़्लू जैसे लक्षणों का भी अवलोकन करते रहना चाहिए। किसी प्रकार के लक्षण दिखने पर अपने चिकित्सकों से परामर्श लेना आवश्यक है।
इस कोरोना समयकाल में अंग.प्रत्यारोपण आदाता कोविड.19 की गंभीर रोगस्थिति में आ जाते हैं अगर ऐसे रोगी कोरोना से संक्रमित हुए। डॉ घोष कहते हैं कि अंग.प्रत्यारोपण कार्यविधि पूरा करने के दौरान प्रदाता से आदाता को कोरोना संक्रमित होने का जोखिम रहता है। साथ ही प्रत्यारोपण के दौरान आदाता एवं प्रदाता से जुड़े स्वास्थ्य संबंधित मुद्दे होते हैं जिनका निवारण करना आवश्यक है। अतएव इन तथ्यों के मद्देनज़र इस संक्रमण समयकाल में प्रत्यारोपण के वक्त पूरी ऐहतियात बरतना आवश्यक है।
डॉ घोष सलाह देते हुए कहते हैं कि अंग प्रत्यारोपण ऐसे चिकित्सा केंद्रों में इलाज कराना चाहिए जहां कोरोना.संक्रमण के इलाज से संबंधित सुविधाएं उपलब्ध हों।

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इस कोविड 19 समयकाल में किडनी ट्रांसप्लांट रोगियों के मन में उठने वाले चिकित्सा संबंधी प्रश्न एवं उनके जवाब।
प्रश्न.1 कोरोनावायरस की स्थिति को लानेवाला वायरस कैसे संचारित होता है
उत्तर कोरोनावायरस संक्रमण का संचरण संक्रमित व्यक्तियों की खांसी एवं छींक की छोटी बूंदों से फैलता है। फ़ोमाइट के माध्यम से भी यह संक्रमण फैलता है। फ़ोमाइट कोई भी बेजान वस्तु हो सकती है जो कोरोनावायरस के प्रभावन में आने पर किसी भी नये व्यक्ति में कोरोना.रोग का हस्तांतरण करता है। मनुष्य वर्ग मेंए बाल त्वचा एवं कपड़े फ़ोमाइट की श्रेणी में आते हैं। विभिन्न फ़ोमाइट पर कोरोनावायरस अलग अलग समयकाल तक अस्तित्व में रहता है। अधिकांश जनसंख्या मेंए कोविड 19 के लिए उद्भवन अवधि 2 से 14 दिनों तक होती है। हाल में उभरते वैज्ञानिक साक्ष्यों के अनुसार कोरोनावायरस वायुमार्ग संचरण के लायक भी हो सकता है।
प्रश्न.2 क्या प्रत्यारोपण आदाताओं को कोविड 19 से संक्रमित होने का ज़्यादा जोखिम रहता है
उत्तर अंग प्रत्यारोपण रोगियों को कोविड 19 से संक्रमित होने का उतना ही जोखिम होता है जोकि समाज के अन्य व्यक्ति को भी होता है। लेकिन अंग प्रत्यारोपण आदाताओं द्वारा प्रतिरोधकता दमनसे संबंधित दवाओं का सेवन करने से ऐसे व्यक्तियों को गंभीर कोविड 19 संक्रमण का खतरा अन्य स्वस्थ व्यक्तियों या मज़बूत रोग प्रतिरक्षा तंत्र वाले व्यक्तियों की तुलना में ज़्यादा होता है। लेकिन इटली देश के लामबाड़ी प्रांत में हुए एक शोध के अनुसार अंग.प्रत्यारोपित रोगियों को किसी प्रकार के अतिरिक्त जोखिम प्रभावन में नहीं रहना होता है क्योंकि उनके जन्मजात प्रतिरक्षा तंत्र में प्रतिरोधक दमन.संबंधित दवाओं द्वारा किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं दिखता है।
प्रश्न.3 क्या प्रत्यारोपण आदाताओं को विशेष यात्रा संबंधित प्रतिबंधों का अनुसरण करना पड़ता है
उत्तर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार ने कोरोना समयकाल के दौरानए कुछ देशों की यात्रा नहीं करने की सलाह दी है। यात्रा.संबंधित दिशा.निर्देशों को नियमित रूप से सामयिक बनाया जाता है। इस संदर्भ में किसी प्रकार की सूचना प्राप्त करने के लिए वेबसाइट http://www.mohfw.gov.in/travel_ad.html पर संपर्क किया जा सकता है।
अंग प्रत्यारोपण आदाताओं के परिवार के अन्य सदस्यों को भी सलाह दी जाती है कि वे उच्चजोखिम वाले क्षेत्रों की यात्रा ना करें क्योंकि उनके घर वापस आने पर प्रत्यारोपित आदाताओं को उनके द्वारा कोरोना संक्रमित होने का ज़्यादा खतरा होता है।

प्रश्न 4 अंग प्रत्यारोपण आदाताओं को मास्क पहनना और भीड़ भाड़ वाले स्थानों में जाने से बचना चाहिए
उत्तर साधारणतया प्रत्यारोपण रोगियों को भीड़ वाले सार्वजनिक स्थानों पर जाना नहीं चाहिए। अस्पताल के बाहर मास्क पहनने से वायरस.संक्रमण से बचा जा सकता है यह एक विवादास्पद तथ्य है। लेकिन भीड़ वाले स्थानों पर ऐसे व्यक्तियों को तीन तहवाला सर्जिकल मास्क पहनना चाहिए।
प्रत्यारोपण आदाताओं को सामाजिक दूरी तथा बार बार हाथ धोना और हैंड सैनीटाइज़र का इस्तेमाल करना चाहिए।

प्रश्न.5 अंग प्रत्यारोपण रोगियों को फ़्लू जैसे लक्षण परिलक्षित होने पर क्या करना चाहिए
‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌उत्तर किसी प्रत्यारोपण रोगी को बुखार या खांसी है तो ऐसे व्यक्तियों को अपने प्रत्यारोपण चिकित्सा केंद्रों पर संपर्क करना चाहिए। अगर चिकित्सक उन्हें अस्पताल आने को कहते हैं तो उन लोगों को अस्पताल के अंदर मास्क पहनकर प्रवेश करना चाहिए। किसी प्रकार की मेडिकल इम्रजेंसी वाली स्थिति में मसलन सांस लेने में दिक्कत उन लोगों को नज़दीकी इम्रजेंसी विभाग के पास जाना चाहिए।

प्रश्न.6 अगर प्रत्यारोपण रोगियों की दवाएं समाप्त हो गयी होंए तो ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए
‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌उत्तर लॉकडाउन की स्थिति में रोगियों को अपने पास कम से कम दो महीनों की दवा रखनी चाहिए। वैकल्पिक रूप से दवाओं का प्रबंध करना अति आवश्यक है। अगर दवाएं बाज़ार में उपलब्ध न हों तो रोग का इलाज कर रहे अस्पतालों में संपर्क करना चाहिए। ऐसी संभावना है कि इस दिशा में अस्पताल अवश्य सहायता करेंगे।

सौजन्य : स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार। ।
इंडियन सोसायटी ऑफ़ नेफ़्रोलॉजी
नेशनल ऑर्गन ऐंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइज़ेशन
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(यह लेख ज्ञानभद्र ने लिखा है। ज्ञानभद्र स्वास्थ्य मामलों में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं।)
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