चिराग के लिए चाचा पशुपति पारस का दरवाजा भी बंद… मिलने गए तो 20 मिनट बाद खुला गेट

पटना : लोक जन शक्ति पार्टी (लोजपा) में जारी विवाद के बीच पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान के लिए उनके चाचा के भी घर का दरवाजा बंद होता दिख रहा है। सोमवार को चिराग अपने चाचा पशुपति पारस पासवान के घर पहुंचे। यहां उन्हें गेट पर 20 मिनट तक इंतजार करना पड़ा। 20 मिनट के बाद गेट खुला। हालांकि दोनों की मुलाकात नहीं हो सकी, क्योंकि पशुपति पारस कुछ देर पहले ही घर से निकल गए थे। सूत्रों के अनुसार चिराग अपनी पार्टी की कमान मां रीना पासवान के हाथों में सौंपने को तैयार हैं। गौरतलब है कि एक दिन पहले लोजपा के पांच सांसदों ने लोजपा से किनारा कर लिया था। पूरी राजनीतिक गलियारे में हलचल मच गई। चिराग से नाराज इन सांसदों के जदयू में शामिल होने के कयास भी खूब लगे। 6 में से 5 सांसदों के टूटने से पार्टी में कुछ नहीं बचता। लिहाजा, चिराग अब पार्टी के अध्यक्ष पद को छोड़ने को तैयार हो गए हैं।

बागी 5 सांसदों को लेकर पशुपति मिलने पहुंचे लोस स्पीकर से
लोजपा के बागी पांचों सांसदों को लेकर चिराग के चाचा पशुपति पारस अपने घर से लोकसभा स्पीकर से मिलने पहुंचे हैं। लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला से मुलाकात की। इन लोगों ने एक पत्र स्पीकर को सौंपा है। ऐसा माना जा रहा है कि इस पत्र के जरिए चिराग पासवान की जगह पशुपति पारस को लोजपा का अध्यक्ष प्रस्तावित किया गया है।

इन 5 सांसदों ने चिराग के खिलाफ मोर्चा
लोजपा में जिन पांच सांसदों ने चिराग पासवान के खिलाफ मोर्चा खोला है, इनमें- चाचा पशुपति पारस, चचेरे भाई प्रिंस राज, चंदन सिंह, वीणा देवी, महबूब अली केशर। पार्टी में इकलौते सांसद खुद चिराग पासवान बचे हैं।

बागी पशुपति बोले-पार्टी तोड़ी नहीं, बचाई है
अपने भतीजे चिराग पासवान के खिलाफ मोर्चा का नेतृत्व करने वाले सांसद पशुपति पारस पासवान ने कहा कि उन्होंने पार्टी तोड़ी नहीं, बल्कि बचाई है। इसमें मजबूरी का फैसला बताया। पशुपति ने कहा कि भाई रामविलास पासवान की मौत के बाद चिराग ने कुछ ऐसे फैसले लिए हैं, जिसकी वजह से पार्टी विलुप्त होने की कगार पर है। बता दें विधानसभा चुनाव के दौरान भी पशुपति पारस ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कामों की सराहनी की थी। हालांकि कुछ घंटों बाद उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया था। दरअसल, एनडीए के साथ मिलकर पशुपति पारस बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे। जबकि चिराग ने अपनी पार्टी को एनडीए से अलग कर अकेला चुनाव लड़ा और पार्टी को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली। बाद में वह विधायक भी जदयू में शामिल हो गया।

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